कहीं तन्हाई में तुमने, मेरे खयालो को जगाया होगा
अपनी आंखो में , मेरी उम्मीदों को सजाया होगा
अपनी आंखो में , मेरी उम्मीदों को सजाया होगा
ये जो चाँद गायब है आसमान से कहीं
तुमने मेरा नाम लेकर उसको बुलाया होगा
ये जो नींद में सोई सी उतरी है सुबह ज़मीं पर
मेरी एक याद ने तुमको सारी रात जगाया होगा
ये जो हवा आयी है एक गीला सा बदन लेकर
हमारे फासलों ने तुमको भी एक बार रुलाया होगा
ये जो मेरी साँसों में महक उठी है खुशबू तेरी
तुमने मेरी तस्वीर को सीने से लगाया होगा
-तरुण
ये जो चाद गायब......सुन्दर रचना ,शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंमेरी
विक्रम
कमाल का लिखते हैं, तारीफ़ के लिए शब्द कम पड़ रहे हैं।
जवाब देंहटाएंone word is enough,simply superb
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