तेरे कूचे से जब निकले , एक अपना ही सहारा था
दारियां में बस हम ही थे, न कश्ती थी न किनारा था
वो एक खुदा के आगे, खाती थी सारी कसमे
न कसमें वो उसकी थी, न खुदा वो हमारा था
उस एक रात की खातिर, जिए हम कितनी ज़िंदगी
वो एक दिन हमने कुछ ऐसे मर मर के गुज़ारा था
मैं उस वक्त के ख्वाब , अक्सर रातो को देखता हूँ
जब तुम अजनबी थे, मेरा कोई ख्वाब न तुम्हारा था
वो अजनबियों से जाकर कहता था मेरे किस्से
मेरी मोहब्बत का क़र्ज़ , उसने कुछ इस तरह उतारा था
-तरुण
hey tarun...
जवाब देंहटाएंdil ko chu gayi yaar tumhari kavita...great work...specially lines like
वो एक खुदा के आगे, खाती थी सारी कसमे
न कसमें वो उसकी थी, न खुदा वो हमारा था
really...yeah kavita har padhne waale ke dil ke paas hogi
उस एक रात की खातिर, जिए हम कितनी ज़िंदगी
जवाब देंहटाएंवो एक दिन हमने कुछ ऐसे मर मर के गुज़ारा था
Beautiful expression!
subhan alla awesome
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