चिराग तो सारे
बुझा दिए मैंने
फिर भी न जाने कौन
जल रहा है
कि अँधेरा नही होता
कब से ये परछाई मूझे पकडे है
न जाने क्यों मुझे छोड़कर नही जाती
कोई भी तो आवाज़ नही है
फिर न जाने क्यों
एक तन्हाई नही मिलती
मैं कबसे चुप हूँ खामोश हूँ
लेकिन न जाने कौन बोल रहा है
जो तन्हाई मेरे घर नही आती
मैंने खोल दिए है सब दरवाजे
फिर भी न जाने कौन है
खड़ा है किसी दरवाज़े पे कही
कि दस्तकें बंद नही होती
कौन है जो
बुझा दिए मैंने
फिर भी न जाने कौन
जल रहा है
कि अँधेरा नही होता
कब से ये परछाई मूझे पकडे है
न जाने क्यों मुझे छोड़कर नही जाती
कोई भी तो आवाज़ नही है
फिर न जाने क्यों
एक तन्हाई नही मिलती
मैं कबसे चुप हूँ खामोश हूँ
लेकिन न जाने कौन बोल रहा है
जो तन्हाई मेरे घर नही आती
मैंने खोल दिए है सब दरवाजे
फिर भी न जाने कौन है
खड़ा है किसी दरवाज़े पे कही
कि दस्तकें बंद नही होती
कौन है जो
न सामने आता है
न लौटकर जाता है
-तरुण
न लौटकर जाता है
-तरुण
बहुत खूबसूरत , ये तुम्हारी सबसे बेहतरीन रचनाओं मे से इक होनी चाहिए - गोपाल
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