कोई चेहरा
मूझे
नही अपना लगता तेरे बिना
ये घर मूझे घर सा नही लगता तेरे बिना
मैं रोता भी हूँ कि हँसता सा लगूँ
एक अश्क भी आंखो से नही ढलता तेरे बिना
रात भर बैठकर मैं चाँद को ढूंढ़ता रहूँ
कि चाँद भी अब नही चमकता तेरे बिना
है मयकदा भी खाली साकी भी परेशां है
एक पैमाना भी अब नही छलकता तेरे बिना
कोई फूल अब न महके कलियाँ भी गुमसुम है
एक भंवरा भी गुलशन से नही गुज़रता तेरे बिना
-तरुण
achhi poems hai.
जवाब देंहटाएंek paimana bhi nahi chalakta tera bina,bahut sundar
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