वो आए मेरी मजार पे , और बस गुज़र गए
हम फिर एक बार जीने को थे, फिर एक बार मर गए
एक एक लम्हा जुदाई का गुज़रे एक एक सदी में
कितने बरस तेरे साथ तो बस पल में गुज़र गए
हम हर उस जगह से गुज़रे जहाँ जहाँ तुम गए
तेरी आंखो का नशा देखकर बोतल में भी उतर गए
मेहमाँ तो बहुत आए थे मेरी महफिल में मगर
वो जिस तरफ़ थे, हमे छोड़कर मेहमाँ सब उधर गए
हम शहर की जिस गली से भी गुज़रे, तेरा ही चर्चा था
कड़कती धूप में क्यों छोड़कर हम अपना ये घर गए
-तरुण
wo jis aur the mehman udhar gaye,wah bahut badhiya
जवाब देंहटाएंबढ़िया ग़ज़लें लिखी है आपने. सुंदर.
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