बुधवार, 30 जनवरी 2008

घर


ये घर मेरा वो घर मेरा
ये लोग मेरे वो लोग मेरे
सवाल बहुत मामूली है
लेकिन ज़िंदगी बहुत उलझी है
कभी इस घर कभी उस घर
कभी इस देस कभी उस देस
मैं घूमता रहा भटकता रहा
न वहाँ कोई मिला
जो बाँध सका मुझको
न यहाँ कोई मिला
जो रोके मुझको
मैं चलता रहा सब बदलता रहा
न यह घर मेरा न वो घर मेरा
न यह लोग मेरे न वो लोग मेरे ॥

-तरुण

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