कभी कभी वो आती है जब जब
कभी कभी वो कुछ कहती है जब जब
हवाओं में घुल जाती है एक खुशबू और
तन्हाइयां भी एक सरगम गाती है तब तब
कभी कभी वो मुस्कुराती है जब जब
कभी कभी वो जुल्फें बिखराती है जब जब
बागों में बहारें लगती है झूमने और
आसमानों में घटायें छा जाती है तब तब
कभी कभी वो कुछ गुनगुनाती है जब जब
कभी कभी वो कुछ शर्माती है जब जब
हर तरफ पंछी लगते है चहचहाने और
बादलों में चांदनी छुप जाती है तब तब
-तरुण
(written sometime in 1999-200)
कभी कभी वो कुछ कहती है जब जब
हवाओं में घुल जाती है एक खुशबू और
तन्हाइयां भी एक सरगम गाती है तब तब
कभी कभी वो मुस्कुराती है जब जब
कभी कभी वो जुल्फें बिखराती है जब जब
बागों में बहारें लगती है झूमने और
आसमानों में घटायें छा जाती है तब तब
कभी कभी वो कुछ गुनगुनाती है जब जब
कभी कभी वो कुछ शर्माती है जब जब
हर तरफ पंछी लगते है चहचहाने और
बादलों में चांदनी छुप जाती है तब तब
-तरुण
(written sometime in 1999-200)
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