मंगलवार, 29 जनवरी 2008

वो आती है जब जब


कभी कभी वो आती है जब जब
कभी कभी वो कुछ कहती है जब जब
हवाओं में घुल जाती है एक खुशबू और
तन्हाइयां भी एक सरगम गाती है तब तब

कभी कभी वो मुस्कुराती है जब जब
कभी कभी वो जुल्फें बिखराती है जब जब
बागों में बहारें लगती है झूमने और
आसमानों में घटायें छा जाती है तब तब

कभी कभी वो कुछ गुनगुनाती है जब जब
कभी कभी वो कुछ शर्माती है जब जब
हर तरफ पंछी लगते है चहचहाने और
बादलों में चांदनी छुप जाती है तब तब

-तरुण

(written sometime in 1999-200)


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