ये कैसा खुदा मिला है जो हर पल बदलता है
रातो को ख्वाब हमे देकर दिन भर उनके साथ चलता है
मैं हर रात उफक पे जाकर सूरज को ढूंढता हूँ
न जाने कहाँ से आए, किस जगह पे ये ढलता है
वो अपनी कसम देकर अपनी मोहब्बत उठा लाये
क्या प्यार मोहब्बत में भी ऐसा सौदा चलता है
वो मेरे घर आकर, पूछे मेरा पता मुझसे
क्या ऐसे दिवानो से कोई ख्वाब अपने बदलता है
वो दरियाँ में जाकर ढूंढते है उसके खतो को
क्या पानी में मिला आंसू, ढूंढे से भी मिलता है
-तरुण
शुक्रवार, 29 फ़रवरी 2008
बस छूकर गुज़र गए
वो आए मेरी मजार पे , और बस गुज़र गए
हम फिर एक बार जीने को थे, फिर एक बार मर गए
एक एक लम्हा जुदाई का गुज़रे एक एक सदी में
कितने बरस तेरे साथ तो बस पल में गुज़र गए
हम हर उस जगह से गुज़रे जहाँ जहाँ तुम गए
तेरी आंखो का नशा देखकर बोतल में भी उतर गए
मेहमाँ तो बहुत आए थे मेरी महफिल में मगर
वो जिस तरफ़ थे, हमे छोड़कर मेहमाँ सब उधर गए
हम शहर की जिस गली से भी गुज़रे, तेरा ही चर्चा था
कड़कती धूप में क्यों छोड़कर हम अपना ये घर गए
-तरुण
हम फिर एक बार जीने को थे, फिर एक बार मर गए
एक एक लम्हा जुदाई का गुज़रे एक एक सदी में
कितने बरस तेरे साथ तो बस पल में गुज़र गए
हम हर उस जगह से गुज़रे जहाँ जहाँ तुम गए
तेरी आंखो का नशा देखकर बोतल में भी उतर गए
मेहमाँ तो बहुत आए थे मेरी महफिल में मगर
वो जिस तरफ़ थे, हमे छोड़कर मेहमाँ सब उधर गए
हम शहर की जिस गली से भी गुज़रे, तेरा ही चर्चा था
कड़कती धूप में क्यों छोड़कर हम अपना ये घर गए
-तरुण
गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008
तेरे कूचे से
तेरे कूचे से जब निकले , एक अपना ही सहारा था
दारियां में बस हम ही थे, न कश्ती थी न किनारा था
वो एक खुदा के आगे, खाती थी सारी कसमे
न कसमें वो उसकी थी, न खुदा वो हमारा था
उस एक रात की खातिर, जिए हम कितनी ज़िंदगी
वो एक दिन हमने कुछ ऐसे मर मर के गुज़ारा था
मैं उस वक्त के ख्वाब , अक्सर रातो को देखता हूँ
जब तुम अजनबी थे, मेरा कोई ख्वाब न तुम्हारा था
वो अजनबियों से जाकर कहता था मेरे किस्से
मेरी मोहब्बत का क़र्ज़ , उसने कुछ इस तरह उतारा था
-तरुण
दारियां में बस हम ही थे, न कश्ती थी न किनारा था
वो एक खुदा के आगे, खाती थी सारी कसमे
न कसमें वो उसकी थी, न खुदा वो हमारा था
उस एक रात की खातिर, जिए हम कितनी ज़िंदगी
वो एक दिन हमने कुछ ऐसे मर मर के गुज़ारा था
मैं उस वक्त के ख्वाब , अक्सर रातो को देखता हूँ
जब तुम अजनबी थे, मेरा कोई ख्वाब न तुम्हारा था
वो अजनबियों से जाकर कहता था मेरे किस्से
मेरी मोहब्बत का क़र्ज़ , उसने कुछ इस तरह उतारा था
-तरुण
बुधवार, 27 फ़रवरी 2008
अभी बाकी है
न दफनाओ मुझको कि सीने में कुछ साँस अभी बाकी है
आँखे बंद है मगर दिल में कुछ ख्वाब अभी बाकी है
मैं कैसे मान लूँ कि तुम मुझे प्यार नही करती
जुबाँ कह चुकी मगर आँखो का एक जवाब अभी बाकी है
तुम जा रही हो ज़रा कुछ पल और ठहर जाओ
रिश्ता तोड़ने की रस्में, आंसूओ का एक रिवाज़ अभी बाकी है
सीने में छिपी हर बात को, लब तो कह नही सकते
तुम दिल से सुनो, धडकनों की एक आवाज़ अभी बाकी है
वो मेरा कत्ल करके टटोलते है मेरी रूहों को
मरने के बाद भी शायद एक और हिसाब अभी बाकी है
-तरुण
मेरी मजार पे
मेरी मजार पे एक चिराग जला गया कोई
बुझती उम्मीदों को एक आस दिखा गया कोई
आज की रात बहुत बेचैन है कटती ही नही
सुबह का एक ख्वाब इसे दिखा गया कोई
एक तेरे दर्द के बीमार थे हम, मर भी गए
उसकी दवा सारे शहर को पिला गया कोई
अपना चेहरा पहचानता तो था मैं लेकिन
एक आईना कल रात मुझे दिखा गया कोई
मैं एक कागज़ को लिए सोचता ही रहा तुझको
तेरी एक तस्वीर फलक पे बना गया कोई
-तरुण
रविवार, 24 फ़रवरी 2008
नही भूले
तेरी उम्मीदों में ख़ुद को सजाना नही भूले
तेरी यादो को रातो में हम जगाना नही भूले
मैं वापिस लौट आऊँगा, जो तु इक सदा दे दे
तेरी आवाजों पे हम ख़ुद को भुलाना नही भूले
वो कहते है मुझे पागल, मुझे दीवाना कहते है
हर हाल में हम तेरे दर पे जाना नही भूले
मेरी हर चाह में तु है , तु ही मेरी तमन्ना है
हर रात तुझे हम ख्वाबो में बुलाना नही भूले
तु मुझ बिन अकेली है, मैं तुझ बिन तरसता हूँ
ये फासले अब तक हमे तड़पाना नही भूले
-तरुण
तेरी यादो को रातो में हम जगाना नही भूले
मैं वापिस लौट आऊँगा, जो तु इक सदा दे दे
तेरी आवाजों पे हम ख़ुद को भुलाना नही भूले
वो कहते है मुझे पागल, मुझे दीवाना कहते है
हर हाल में हम तेरे दर पे जाना नही भूले
मेरी हर चाह में तु है , तु ही मेरी तमन्ना है
हर रात तुझे हम ख्वाबो में बुलाना नही भूले
तु मुझ बिन अकेली है, मैं तुझ बिन तरसता हूँ
ये फासले अब तक हमे तड़पाना नही भूले
-तरुण
शनिवार, 23 फ़रवरी 2008
अपनी आँखों का गम
अपनी आँखों का गम, हमे छुपाना नही आया
एक टूटा हुआ रिश्ता, हमे निभाना नही आया
कल शब भर चाँद खड़ा था मेरे दरवाज़े पे
बस आवाज़ देकर घर में, हमे बुलाना नही आया
हम अगर जिंदा है लेकिन ज़िंदगी साथ नही
और एक वादा मौत का , हमे निभाना नही आया
जो तेरे आशिक न होते हम भी तो क्या होते
कुछ और करके ज़िंदगी में , हमे दिखाना नही आया
एक टूटा हुआ रिश्ता, हमे निभाना नही आया
कल शब भर चाँद खड़ा था मेरे दरवाज़े पे
बस आवाज़ देकर घर में, हमे बुलाना नही आया
हम अगर जिंदा है लेकिन ज़िंदगी साथ नही
और एक वादा मौत का , हमे निभाना नही आया
जो तेरे आशिक न होते हम भी तो क्या होते
कुछ और करके ज़िंदगी में , हमे दिखाना नही आया
वो मेरा नाम लेकर अब तलक आंसू बहाती है
मगर उसके प्यार का क़र्ज़, हमे लौटाना नही आया
मगर उसके प्यार का क़र्ज़, हमे लौटाना नही आया
-तरुण
शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008
तेरे बिना
कोई चेहरा मूझे नही अपना लगता तेरे बिना
ये घर मूझे घर सा नही लगता तेरे बिना
मैं रोता भी हूँ कि हँसता सा लगूँ
एक अश्क भी आंखो से नही ढलता तेरे बिना
रात भर बैठकर मैं चाँद को ढूंढ़ता रहूँ
कि चाँद भी अब नही चमकता तेरे बिना
है मयकदा भी खाली साकी भी परेशां है
एक पैमाना भी अब नही छलकता तेरे बिना
कोई फूल अब न महके कलियाँ भी गुमसुम है
एक भंवरा भी गुलशन से नही गुज़रता तेरे बिना
-तरुण
गुरुवार, 21 फ़रवरी 2008
चलो
तुम छोड़ आओ उन रस्मों को
मैं इस घर को छोड़ देता हूँ
चलते है हम उन रास्तों पे
गुज़रते है उन राहों से
जो तेरे मेरे दरम्यां उन सब फासलों को मिटाती है
जो उन दीवारों के परे भी जाती है
जो न जाने कबसे रोके है मुझको
न जाने कबसे तुझको भी छुपाये है
इन छोटे छोटे लम्हों में न जाने कितनी सदिया बिताये है
चलो ढ़ूँढते है उस शहर को हम
वहाँ एक घर बनाते है
जहाँ सुबह का सूरज रात के ख्वाबो को सताता है
और रात में
जहाँ चाँद आँगन में उतरकर आता है
जहाँ चांदनी हर घर में जगमगाती है
हर रात को नींद न जाने कितने
ख्वाब संजोकर लाती है
चलो कुछ ऐसी हसरतों को सजाते है
इस जहाँ से अलग एक जहाँ हम बसाते है
-तरुण
माँ
जब एक नया जीवन पाने को मैं इतराता हूँ
इस दुनिया को देखने को मेरी आँखे जब तरसती है
तब एक मन्दिर के दीये सा मैं तेरी कोख में जल जाता हूँ
जब मुझको यहाँ की रीत न समझ में आती है
इस दुनिया के ताने बाने मुझको बेमानी से लगते है
तब एक नन्हें फूल सा मैं तेरी गोद में खिल जाता हूँ
यहाँ के झूठे सब रिश्तो से जब मैं टूट जाता हूँ
ढून्ढता हूँ जब मैं एक सच्चा प्यार कही
तब मैं एक प्यासे पंछी सा तेरे आँचल में छुप जाता हूँ
यहाँ के उलझे हुए रास्तों में जब मैं उलझ जाता हूँ
होता नही कोई राह दिखाने को जब
तब मैं उन राहों पे बस तेरी दुआओं से चलता जाता हूँ
जब इस जीवन का आखिरी समय आ जाता है
थक जाता हूँ मैं इस ज़िंदगी से
तब मैं एक पौधा बन फिर से तेरी कोख मैं उग जाता हूँ
-तरुण
मंगलवार, 19 फ़रवरी 2008
कही तन्हाई में
कहीं तन्हाई में तुमने, मेरे खयालो को जगाया होगा
अपनी आंखो में , मेरी उम्मीदों को सजाया होगा
अपनी आंखो में , मेरी उम्मीदों को सजाया होगा
ये जो चाँद गायब है आसमान से कहीं
तुमने मेरा नाम लेकर उसको बुलाया होगा
ये जो नींद में सोई सी उतरी है सुबह ज़मीं पर
मेरी एक याद ने तुमको सारी रात जगाया होगा
ये जो हवा आयी है एक गीला सा बदन लेकर
हमारे फासलों ने तुमको भी एक बार रुलाया होगा
ये जो मेरी साँसों में महक उठी है खुशबू तेरी
तुमने मेरी तस्वीर को सीने से लगाया होगा
-तरुण
दस्तूर
सीने में धड़कता है दिल ऐसे , क़र्ज़ जैसे कोई लौटाता है
जीने की कोई चाह नही, एक दस्तूर सा बस निभाता है
मैं टुकडा टुकडा साँसों को जोड़कर, कुछ लम्हे संजोता हूँ
ये टुकडा टुकडा लम्हों को, तेरी यादो पे लुटाता है
मैं तेरे नाम को भूलकर, कुछ खुशियों को चुनता हूँ
ये अपनी सारी खुशियों में , तेरे गमो को बुलाता है
मैं मंदिरों में, मैं मस्जिदों में , ढून्ढता हूँ एक खुदा को
ये हर मन्दिर में, हर मस्जिद में, तेरी मूरत को सजाता है
वो कहते है तुझे भूलकर, मैं जीता भी रहूँ हँसता भी रहूँ
ये तेरी साँसों से जीता है , तेरी बातो पे ही मुस्कुराता है
-तरुण
वादा
अपने रिश्ते का ज़िक्र न तुम किसी से करना
न गुज़रुंगा मैं, न कभी तुम इन गलियों से गुजरना
मेरी हर याद को एक भूले ख्वाब सा तुम भुला देना
मेरी हर निशानी को किसी दरिया में चुपके से बहा देना
मैं भी तेरे नाम से अपना हर रिश्ता मिटा दूंगा
अपनी आंखो से तेरे हर अश्क को बहा दूंगा
चलो अपने हर ख्वाब को किसी कब्र में सुला दे हम
अपने रिश्तो को पुरानी किताबो में छुपा दे हम
अपनी सब कसमो को तोड़ने की एक कसम और खा ले
फिर कभी न मिलने का एक वादा और निभा ले .......
-तरुण
बुधवार, 13 फ़रवरी 2008
मैं आता हूँ चला जाता हूँ
मंगलवार, 12 फ़रवरी 2008
साहिल
बैठकर साहिल पे हर शाम
समंदर को देखता हूँ
लहर लहर वो ऐसे आता है
मेरी तरफ
जैसे तुम एक दिन दौड़ती हुई आयी थी
और सिमट गयी थी मेरी आगोश में
उस दिन लगा था जैसे
एक समंदर समां गया है
मेरी इन बाँहों में
फिर एक दिन
तुम लहरों सी ही लौट गयी
आज जब देखता हूँ
इन लहरों को
ऐसे लौटती है वो साहिल से
जैसे एक वादा कर रही हो
कह रही हो
तुम रुको
मैं अभी आती हूँ
लेकिन जब तुम गयी थी
तुमने तो कोई वादा नही किया था
न ही मुझसे कहा था
मेरा इंतज़ार करना
फिर भी न जाने क्यों
मैं हर शाम
उसी साहिल पे तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ
जहाँ से तुम एक दिन हाथ छुडाकर चली आयी थी
-तरुण
समंदर को देखता हूँ
लहर लहर वो ऐसे आता है
मेरी तरफ
जैसे तुम एक दिन दौड़ती हुई आयी थी
और सिमट गयी थी मेरी आगोश में
उस दिन लगा था जैसे
एक समंदर समां गया है
मेरी इन बाँहों में
फिर एक दिन
तुम लहरों सी ही लौट गयी
आज जब देखता हूँ
इन लहरों को
ऐसे लौटती है वो साहिल से
जैसे एक वादा कर रही हो
कह रही हो
तुम रुको
मैं अभी आती हूँ
लेकिन जब तुम गयी थी
तुमने तो कोई वादा नही किया था
न ही मुझसे कहा था
मेरा इंतज़ार करना
फिर भी न जाने क्यों
मैं हर शाम
उसी साहिल पे तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ
जहाँ से तुम एक दिन हाथ छुडाकर चली आयी थी
-तरुण
कौन है
चिराग तो सारे
बुझा दिए मैंने
फिर भी न जाने कौन
जल रहा है
कि अँधेरा नही होता
कब से ये परछाई मूझे पकडे है
न जाने क्यों मुझे छोड़कर नही जाती
कोई भी तो आवाज़ नही है
फिर न जाने क्यों
एक तन्हाई नही मिलती
मैं कबसे चुप हूँ खामोश हूँ
लेकिन न जाने कौन बोल रहा है
जो तन्हाई मेरे घर नही आती
मैंने खोल दिए है सब दरवाजे
फिर भी न जाने कौन है
खड़ा है किसी दरवाज़े पे कही
कि दस्तकें बंद नही होती
कौन है जो
बुझा दिए मैंने
फिर भी न जाने कौन
जल रहा है
कि अँधेरा नही होता
कब से ये परछाई मूझे पकडे है
न जाने क्यों मुझे छोड़कर नही जाती
कोई भी तो आवाज़ नही है
फिर न जाने क्यों
एक तन्हाई नही मिलती
मैं कबसे चुप हूँ खामोश हूँ
लेकिन न जाने कौन बोल रहा है
जो तन्हाई मेरे घर नही आती
मैंने खोल दिए है सब दरवाजे
फिर भी न जाने कौन है
खड़ा है किसी दरवाज़े पे कही
कि दस्तकें बंद नही होती
कौन है जो
न सामने आता है
न लौटकर जाता है
-तरुण
न लौटकर जाता है
-तरुण
रविवार, 10 फ़रवरी 2008
तेरी तस्वीर
मेरा चाँद
शनिवार, 9 फ़रवरी 2008
बूढ़ापा
एक बूढ़ा बच्चा
कागज़ की एक कश्ती को
समंदर में चला रहा है
जो वक़्त लौटकर नही आता
उन दिनों को
देखो कैसे बुला रहा है
बाल सब सफ़ेद हो गए है
लेकिन यादें शायद सब
साथ है
और जो कुछ भूल गया है
उन्हें फिर से जीकर
उस हर याद को जगा रहा है
बहुत अजीब होता है यह बूढ़ापा भी
खुद नही चल सकता लेकिन
ज़िंदगी भर की यादो को बोझ लिए चलता है
जो ख्वाब अधूरे है अब तक
उन ख्वाबो के लिए कुछ और चेहरे ढून्ढता है
और फिर उन्ही चेहरों में मरते मरते
अपनी एक नयी ज़िंदगी से मिलता है
-तरुण
कागज़ की एक कश्ती को
समंदर में चला रहा है
जो वक़्त लौटकर नही आता
उन दिनों को
देखो कैसे बुला रहा है
बाल सब सफ़ेद हो गए है
लेकिन यादें शायद सब
साथ है
और जो कुछ भूल गया है
उन्हें फिर से जीकर
उस हर याद को जगा रहा है
बहुत अजीब होता है यह बूढ़ापा भी
खुद नही चल सकता लेकिन
ज़िंदगी भर की यादो को बोझ लिए चलता है
जो ख्वाब अधूरे है अब तक
उन ख्वाबो के लिए कुछ और चेहरे ढून्ढता है
और फिर उन्ही चेहरों में मरते मरते
अपनी एक नयी ज़िंदगी से मिलता है
-तरुण
मैं कहने तुमसे आया था
मैं कहने तुमसे आया था
लेकिन होठ मेरे कुछ कह न सके
और खामोशी की जो आवाज़ हुई
उसे तुम सुन न सके न समझ पाए
मेरी आँखे भी कुछ कह देती
लेकिन तेरी आंखो में वो डूब गयी
फिर होश उन्हें अपना न रहा
वो क्या कहती क्या समझाती
जब लौटकर मैं आया था
जब उठा था मैं तेरी महफिल से
एक उम्मीद पे मैं चलता ही रहा
न पकडा तुमने दामन को , न मुझको कोई आवाज़ ही दी ॥
-तरुण
लेकिन होठ मेरे कुछ कह न सके
और खामोशी की जो आवाज़ हुई
उसे तुम सुन न सके न समझ पाए
मेरी आँखे भी कुछ कह देती
लेकिन तेरी आंखो में वो डूब गयी
फिर होश उन्हें अपना न रहा
वो क्या कहती क्या समझाती
जब लौटकर मैं आया था
जब उठा था मैं तेरी महफिल से
एक उम्मीद पे मैं चलता ही रहा
न पकडा तुमने दामन को , न मुझको कोई आवाज़ ही दी ॥
-तरुण
शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2008
मौसम आते जाते है
गुरुवार, 7 फ़रवरी 2008
सोमवार, 4 फ़रवरी 2008
कलाकार
रविवार, 3 फ़रवरी 2008
तनहा रात
चाँद को ढूंढे रात हमारी
अकेली है वो तनहा बेचारी
कहाँ छुपा है चाँद
न है अमावस
न उमड़कर आये है बादल
फिर न जाने क्यों दिखता नही है चाँद
अकेली है तन्हा हमारी रात
कहाँ छुपा है चाँद
तारे भी सारे टिम टिम चिडाए
झुरमुट बनाकर वो शोर मचाये
अकेली है वो तनहा बेचारी
कहाँ छुपा है चाँद
न है अमावस
न उमड़कर आये है बादल
फिर न जाने क्यों दिखता नही है चाँद
अकेली है तन्हा हमारी रात
कहाँ छुपा है चाँद
तारे भी सारे टिम टिम चिडाए
झुरमुट बनाकर वो शोर मचाये
इस गली जाये उस गली जाये
फिर न जाने क्यों दिखता नही है चाँद
अकेली है तनहा हमारी रात
शनिवार, 2 फ़रवरी 2008
बारिश की बूंदे
रात भर मेरे मकां की छत पे
बारिश की बूंदे टप टप टपकती रही
तुम्हारे जाने के हर एक पल को
हर के लम्हे को ये गिनती रही
बुनती रही
मेरे दिल के हर दर्द की हर आह को
ये सुनाती रही
हर एक आंसू की हर बूँद को
ये टपकाती रही
मुझे बताती रही
तुम्हे जिद्द थी
चले गए तुम
तुम्हारे जाने के गम को बहुत देर तक
यह संजोती
पिरोती रही
और अब जब तुम चले गए हो तो
हर रात मेरे मकां की छत पे
टप टप टपकती है
बहुत टपकती है ये बारिश की बूंदे ॥
-तरुण
बारिश की बूंदे टप टप टपकती रही
तुम्हारे जाने के हर एक पल को
हर के लम्हे को ये गिनती रही
बुनती रही
मेरे दिल के हर दर्द की हर आह को
ये सुनाती रही
हर एक आंसू की हर बूँद को
ये टपकाती रही
मुझे बताती रही
तुम्हे जिद्द थी
चले गए तुम
तुम्हारे जाने के गम को बहुत देर तक
यह संजोती
पिरोती रही
और अब जब तुम चले गए हो तो
हर रात मेरे मकां की छत पे
टप टप टपकती है
बहुत टपकती है ये बारिश की बूंदे ॥
-तरुण
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