शनिवार, 24 नवंबर 2007

त्रिवेणी (three liners)


आज बरसों बाद कुछ कागज़ पे लिखा मैंने
आज बरसों बाद लिखने का कोई बहाना मिला
कुछ वक़्त मिल गया कुछ तुम मिल गए॥

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मौसम बदला फिर से सुहानी हवा चलने लगी
फिर से पेडों पे हरियाली लौट आयी
मेरे भी कुछ सूखे हुए रिश्तो पे नये फूल आयें है

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आज फिर तन्हाइयो के साथ बैठा
फिर से कुछ किस्से सुने सुनाये
ऐसे दोस्त हो तो भला कोई तनहा क्यों रहें ॥

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रात खामोश है जैसे कभी दिन ही न था
सुबह होगी तो फिर से पंछी चहचहाएनंगे
मेरे घर में भी कुछ पंछी सो रहे है॥

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वह किताब पड़ी है खुली हुई सी
जैसे कोई आएगा फिर से पढ़ेगा
मैं भी बिस्तर पे लेटा कुछ दुआएं माँग रहा हूँ ॥

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मैंने ख़त में सब हाल लिख कर भेज दिया
लेकिन अपना नाम लिखना भूल गया
अधूरे ख्वाबो को दिल से नही लगाता कोई ॥

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पलट पलट कर दरवाज़े पे नज़रे जाती है
न जाने कब उनका पैगाम आ जाये
दरवाज़े पे दस्तक हुए न जाने कितने बरस बीत गए ॥

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बार बार सोने की कोशिश करता हूँ
बार बार नींद आकर लौट जाती है
तुम नींद से दोस्ती क्यों नही कर लेती !

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वह ओंस की बूंदे फुलो की पंख्डीयो पे
जैसे कोई प्यार की निशानी छोड़ गया है
मैं भी आजकल कुछ भीगा भीगा सा रहता हूँ ..

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भगवान् का नाम लिया बार बार
बहुत देर तक प्रार्थना भी की
कुछ दिनों से भगवान् का नाम बदल दिया है मैनें


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रात भर आँखे नींद को ढुँढती रही
रात भर खवाब दरवाज़े पे दस्तक देकर लौट गए
ये अँधेरी रात में दीपक क्यों नहीं जलाता कोई !

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सुबह हुई तो फिर से उनका ख्याल आया
फिर से दिन इंतज़ार में गुजरेगा
यह वक़्त अपनी रफ़्तार क्यों बदलता रहता है !

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साथ तो न जाने कब छोड़ आया था
हाथ तो शायद कभी पकडा ही नहीं
क्या चाँद का किसी से कोई रिश्ता नहीं !

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नींद आयी थी मगर मैं सो न सका
तुझे याद करके शायद दिल भरा न था
और कुछ ख्वाब तो खुली आंखो में भी आ जाते है ॥

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बुझाकर चिराग अँधेरा कर दिया मैंने
नींद फिर से तुझे मेरी आंखो में देखकर लौट न जाये
चाँद कभी अंधेरो में छुपा देखा तो नहीं ॥

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सांस न जाने कब से भारी है
दिल भी धड़क रह है घबरा घबरा कर
क्या तेरे बिना लोग ऐसे ही मरा करते है ?

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तेरा नाम लिया और फिर चाँद को देखा
दिल में एक अजीब सा सवाल आया
ऐ चाँद क्या तुने कभी चाँद को देखा है !!

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कल रात बहुत देर तक तू मेरे साथ में थी
सुबह हुई तो तू मेरे पास ना थी
क्यों सपनो में ही नही जी लेते हम आपनी सारी जिंदगी !!

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तेरे जाने का गम दिन रात पिघलता है
और आंखो से अश्क बहते है झरने से
बरफ पिघल पिघल का पानी हो रही है

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हर पल बजती है कानों में एक धुन
जैसे तेरी पायल कि आवाज़ हो
तुम अपने पाँव ज़रा आहिस्ता आहिस्ता उठाकर चला करो ।

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एक डोर सी खींचे रहती है मुझको
जाता हूँ कही और कही और पहुंच जाता हूँ
खूंटे से बंधी गायें खूंटे से दूर जाये भी तो कैसे ।

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यह झील का कल कल करता नीला सा पानी
जैसे आसमान के प्यार का रंग समा गया है इसमे
कुछ दिनों से मेरा रंग भी कुछ बदला बदला सा है !!
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पहले बहुत खेला करते थे हम तीन दोस्त
रात , चाँद और में
तुम्हे देखकर आजकल चाँद ने आना छोड़ दिया ।
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सागर की लहर बार बार सागर से दूर जाती है
हर बार लौटकर सागर में ही खो जाती है
ऐसा ही एक अजीब सा रिश्ता मेरा तेरे नाम से है ।


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दिल में आग लगती है
जब जब तेरी याद आती है
चिमनियों से निकलता धुआं किसी से छिपकर नही रहता ।

tarun
(written at foster city and Lake Tahoe)

सोमवार, 19 नवंबर 2007

तुम

कब से ढूंढ रही है आँखे तुझको
कबसे कानो में तेरी आहट की बेताबी है
जानता हूँ तू बहुत दूर है लेकीन तेरी एक परछाई मेरे पास भी है

कल देखा था तुझे मैंने अपने आँगन में
सामने बैठकर कुछ देर तलक बात भी की
आँख खुली तो ख्वाब लगा ये लेकीन हर कल एक ख्वाब ही है

कल रात चाँद में देखा था तेरा चेहरा
सुबह आयी थी ओड़कर चुनरी तेरी
शाम तक अब सब्र नही होता, तेरी जुदाई की धूप जल रह हूँ मैं

कौन है आया है देखो दरवाज़े पे हुई है दस्तक
बीते हुए पल आये है तेरी यादों का गुलदस्ता लेकर
मैंने दरवाजा खुला रखा है आओ हम लगाए कुछ फूल नए ॥


-tarun
(written at foster city, CA on 11/18/2007)

शुक्रवार, 16 नवंबर 2007

फासले

कभी तुम न थे
कभी नही थे हम
कभी तुम न आयें
कभी तुम्हे न बुला पाए हम
कभी मिले मीलों के फासलें
कभी न मिल पायें हम
कभी राहें न साथ चलीं
कभी राहों में खो गए हम
कभी तुमने न कुछ कहा
कभी तुम्हे न सुन पाए हम
कभी तुमने न देखा मुझको
कभी तुमसे छुप गए हम
कभी तुमने न रोका मुझको
कभी चले आये हम
बहुत दूर चले आये हम ...........

-tarun
(written at foster city on nov 16, 2007 )

बुधवार, 7 नवंबर 2007

मेनका


मेनका , वो अप्सरा
विश्वामित्र के पास जो आयी थी
उनकी तपस्या से जब
इन्द्र की सत्ता डगमगाई थी

क्या कहानी है यह सोचकर
मुझे भी लगा कुछ कर दीखाऊँ
एक अप्सरा एक मेनका को
मैं भी कही से बुला लाऊं

ऐसे तो जिधर भी देखों
सब तरफ अप्सराएँ ही नज़र आती है
कोई जींस में कोई skirt में
हर तरफ सब को लुभाती है

मगर वह अप्सराएँ नही है
जो तुम्हे तपस्या से जगायेगी
वह तो माया है जो तुमसे
दीन रात तपस्या करवाएगी

यह सब सोचकर दिल में आया
मुझको भी अपनी मेनका को पाना है
कुछ करके मुझे भी उसे
अपने पास बुलाना है

ध्यान लगाया सोचा कौनसा
different way मैं अपनाऊँ
OSHO, Art of living या
कोई अपना ही तरीका बनाऊं

फिर सब सोचकर मैं घर से निकला
अब कुछ अलग मुझे कर दिखाना है
यह सब तो सब जानते है
कुछ नया EXAMPLE मुझे बनाना है

कपड़े बदले मोबाइल भी छोडा
email chat सब दिल से निकाले
बन गया मैं विश्वामित्र
यह सोचकर मैंने सब त्याग कर डाले

फिर दूर कही एक park में
एक पेड़ के नीचे आसान लगाया
याद करके मेनका को
इंद्र का मैंने ध्यान लगाया

दिन गया रात आयी
सब तरफ अँधेरा छाया
भूत , dracula और
vampires के नाम ने मुझे डराया

सुबह हुई तो याद आया
कल किसका email आया होगा
फ़ोन पे कितनि missed calls होगी
chat पे भी न जाने किसने बुलाया होगा

मगर दिल में मेनका थी
उसको तो मैंने पाना था
उसके लीए कुछ अलग कुछ नया
मुझे कर दीखाना था

दिन बीतते गए और
मेरी तपस्या चलती रही
हर दिन हर रात मेनका को पाने की
मेरी चाह बड़ती गयी

एक रात को अचानक से
एक आवाज़ ने मुझे उठाया
वत्स जागो यह सुनकर
मैं थोडा घबराया

यह मेनका से पहले
क्यूँ आ गए इंद्र भगवान्
मैंने प्रणाम किया, वह बोले
क्या चाहिये तुमको वरदान

मैंने अपनी चाह बताई
तो वह मुझे समझाने लगे
बेटा समय बदल गया है
और सब कहानी मुझे सुनाने लगे

अब स्वर्ग में भी अप्सराएं सब
मोबाइल पे बाते करती है
न जाने कितने देवताओं से
वह एक साथ flirt करती है


अब कोई तपस्या करे तो हम
खुद ही जाकर उन्हें समझाते है
हर दिन न जाने कितने विश्वमित्रों को
बस यह कहानी सुनाते है

अब न कोई मेनका आएगी
न कोई तुम्हे प्यारे मैं उल्झायेगी
बस अब तो तुम्हे हर बार
इस बुडे इंद्र की आवाज़ ही जगायेगी

अचानक मोबाइल की ring से नींद खुली
देखा office से फ़ोन आया है
monday का meeting time है
बॉस ने जल्दी से बुलाया है

ओह्ह बच गए यह सोचकर मैं जल्दी से उठकर bathroom मैं चला गया .....
-tarun

(written at foster city on Nov 7, 2007)

शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2007

akele akele

अकेले अकेले ही जब तुमको
मुश्किल से रास्तों पे जाना हो
तनहा तनहा ही जब तुमको
नामुम्कीन सी मंजिलों को पाना हो

जब तुम लड़खडाओ और तुमको
थामने वाला कोई न हो
जब तुम रो-ओ और चिल्लाओ
और तुमको सुनने वाला कोई न हो

तब तुम आँखे ऊपर करके
देखना उस आकाश में
करना तुम बाहें ऊपर अपनी
और कहना उस भगवान् से


जब तक चल रही है साँसे मेरी
जब तक क़दमों में जान है
जब तक सीने में कुछ धड़कन है
और दिल में कुछ अरमां है

तब तक तन्हा ही में चलता रहूंगा
छोडूंगा न मंज़िलो की आस कभी
न बदलूंगा में राहें अपनी
और न छोडूंगा जिंदगी का साथ कभी
-tarun
(written somewhere in 2001, in delhi)

पथिक

अपने पीछे छुट जाये तो
प्यार के रीश्ते टूट जाये तो
कुछ रीश्ते नए तू बुनते चलना
ओ पथीक तू चलते चलना॥


बीते हुए दीन तुझे याद आये तो
कुछ टूटे ख्वाब तुझे सताये तो
नयी उमंगो को तू ढुन्ढते चलना
ओ पथीक तू चलते चलना ...

कभी अकेले दील घबराएँ तो
लंबी रातो में नींद न आये तो
उन लम्हों से तू लड़ते चलना
ओ पथीक तू चलते चलना
ओ पथीक तू चलते चलना ....

-tarun
(written at El Dorado hills, CA in may 2007)

Pathik

ओ पथीक तू चलते चलना
ओ पथीक तू चलते चलना
बादलों की छाँव न मीलें तो
धुप में तू चलते चलना
ओ पथीक तू चलते चलना

चांदनी की रात न मीलें तो
बनकर दीपक तू जलते चलना
ओ पथीक तू चलते चलना

फूलों से भरी राह न मीलें तो
कांटो पे ही तू चलते चलना
ओ पथीक तू चलते चलना ....
ओ पथीक तू चलते चलना ..


-tarun

(written at Agilent Technologies, Gurgraon in march,2007)

nav varsh

जब क्शीतीज पे सूरज कल नया सवेरा लाएगा
जब लंबी सर्द रात पे सुबह का आँचल छायेगा

जब धरती पे प्यार के फूलों का मौसम छायेगा
जब में आकाश में आजादी से हर पंछी गायेगा

जब कही कोई गोली कीसी का खून बहाएगी
जब कोई सीमा कही कोई बन्धन लगायेगी

जब कोई मह्ज़ब प्यार के बीच में आएगा
जब भगवान् हमे कोई धर्म सीखायेगा

जब सब मिलकर एक नए दुनीयाँ बनायेंगे
तब हर सुबह हर दीन हम नया वर्ष मनायेंगे ...

--tarun

(written on 31/12/2003 at Antwerp, Belgium)

Barso Pehle

तुम आओ कभी हमारी गली फीर से

फिर से सर्दी की नरम धुप में

मूंगफली खाते हुए


वो हर बात करे

जो करी थी हमने बरसों पहले

फिर से उन सर्द सर्द रातो में
लोहरी की आग हो
फीर से सब बैठकर साथ में
वह हर बात करे
जो करी थी हमने बरसों पहले

फिर से जलते सूरज की दोपहर के बाद
वह ठंडी सी शाम आये

फिर से हम साथ गली में घूमते हुए

वह हर बात करे
जो करी थी हमने बरसों पहले

फीर से सन्डे की सुबह आये
फीर से धीमी धीमी धुप खिले
फीर से गरम गरम चाये के साथ
वह हर बात करे
जो करी थी हमने बरसों पहले

फीर से मोंसून का मौसम आये

फीर घंटो तक बारीश आये

फीर से गरम गरम पकोदो के साथ

वह हर बात करे
जो करी थी हमने बरसों पहले

-tarun

(written at Foster City, CA)

Madhushala


सुबह से शाम तक कंप्यूटर, रात को तो चाहीये प्याला
काम करके जब थक जाऊं तो तब मुझको चाहीये हाला
यहाँ तो सब नीरस है और होठों पे प्यास बहुत है
हर शाम को ढूंढे आँखे, दील भी चाहे बस मधुशाला

मेरे घर की की एक ही राह है जो पहुंचे बस मधुशाला
मेरी आंखो कि एक ही चाह है जो ढूंढे बस एक प्याला
रात को मेरे ख्वाब में आये सुबह उठते ही मॅन ललचाये
हर दीन की मेरी एक दुआ है, की मिल जाये थोडी सी हाला

जीवनपथ में मुझको जीवनसाथी मिले तो प्याला
कभी जो मेरे कदम रूक जाये तो मुझको मील जाये हाला
जिंदगी की मुश्किल रहो पे चलना भी तो बहुत कठीन है
जब जब थक जाऊं मैं तब तब मील जाये मुझको मधुशाला....


यह मेरा एक प्रयास है बच्चन जी की मधुशाला में कुछ और पंक्तियाँ जोड़ने का ॥

-tarun

(written at agilent technologies)

Employee number 786


Mein employee number 786 office ki khidki se bahar dekhta hoon

Din mahine saalon ko yug mein badalte dekhta hoon

Is laptop se garam garam cpu ki hawa aati hai

Iski hard disk bhi ek ajeeb sa raag sunati hai

Yeh screen pe lag wall paper mujhe shimla ki sair karwata hai

Aur yeh email mujhe har pal mere apno ke sandese lata hai

Woh. Kehte hai ki yeh project mera hai

Phir kyun yeh mujhe apna sa nahi lagta hai

Who. Kehte hai ki yeh module mujhe karma hai

Phir kyun mera mann isme nahi lagta hai

Mein employee number 786 office ki khidki se bahar dekhta hoon

Door sapno ke gaun se utri

Ek nanhi pari ko dekhta hoon

Kehti hai khud ko woh consultant aur mujhe candidate bulati hai

Hai bilkul begani par apno se zid who karti hai

Uski baato se phir mera job change ko mann karta hai

Uski promises pe phir se interview dene ko mann karta hai


mein employee number 786 office ki khidki se bahar dekhta hon

mere sapno ke rango mein lipta ek naya offer letter mein dekhta hoon

mere profile se match karti, apni requirements bhool chuki woh

mere products pe kaam karti

apne products sab chhod chuki who

uska employee count badaane kao ab jee karta hai

uske liye naya product banana ka jee karta hai

woh kehti hai mein, mera product uska hai

phir kyun woh aur candidates bhi recruit karti hai

woh kehte ki tum hi bas ab product banaoge

phir kyun woh dusro ko bhi yeh kehti hai

mein employee number 786 office ki khidki se bahar dekhta hoon

woh kehte hai ki woh company ab meri hai

phir kyun woh mujhe hike nahi dete hai

woh kehte hai ki sab milega tumhe

phir kyun woh promotion nahi dete hai ...

mein employee number 786...................


-tarun

(Written at Agilent Technologies, 6th Floor...)