आज बरसों बाद लिखने का कोई बहाना मिला
कुछ वक़्त मिल गया कुछ तुम मिल गए॥
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मौसम बदला फिर से सुहानी हवा चलने लगी
फिर से पेडों पे हरियाली लौट आयी
मेरे भी कुछ सूखे हुए रिश्तो पे नये फूल आयें है
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आज फिर तन्हाइयो के साथ बैठा
फिर से कुछ किस्से सुने सुनाये
ऐसे दोस्त हो तो भला कोई तनहा क्यों रहें ॥
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रात खामोश है जैसे कभी दिन ही न था
सुबह होगी तो फिर से पंछी चहचहाएनंगे
मेरे घर में भी कुछ पंछी सो रहे है॥
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वह किताब पड़ी है खुली हुई सी
जैसे कोई आएगा फिर से पढ़ेगा
मैं भी बिस्तर पे लेटा कुछ दुआएं माँग रहा हूँ ॥
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मैंने ख़त में सब हाल लिख कर भेज दिया
लेकिन अपना नाम लिखना भूल गया
अधूरे ख्वाबो को दिल से नही लगाता कोई ॥
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पलट पलट कर दरवाज़े पे नज़रे जाती है
न जाने कब उनका पैगाम आ जाये
दरवाज़े पे दस्तक हुए न जाने कितने बरस बीत गए ॥
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बार बार सोने की कोशिश करता हूँ
बार बार नींद आकर लौट जाती है
तुम नींद से दोस्ती क्यों नही कर लेती !
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वह ओंस की बूंदे फुलो की पंख्डीयो पे
जैसे कोई प्यार की निशानी छोड़ गया है
मैं भी आजकल कुछ भीगा भीगा सा रहता हूँ ..
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भगवान् का नाम लिया बार बार
बहुत देर तक प्रार्थना भी की
कुछ दिनों से भगवान् का नाम बदल दिया है मैनें
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रात भर आँखे नींद को ढुँढती रही
रात भर खवाब दरवाज़े पे दस्तक देकर लौट गए
ये अँधेरी रात में दीपक क्यों नहीं जलाता कोई !
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सुबह हुई तो फिर से उनका ख्याल आया
फिर से दिन इंतज़ार में गुजरेगा
यह वक़्त अपनी रफ़्तार क्यों बदलता रहता है !
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साथ तो न जाने कब छोड़ आया था
हाथ तो शायद कभी पकडा ही नहीं
क्या चाँद का किसी से कोई रिश्ता नहीं !
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नींद आयी थी मगर मैं सो न सका
तुझे याद करके शायद दिल भरा न था
और कुछ ख्वाब तो खुली आंखो में भी आ जाते है ॥
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बुझाकर चिराग अँधेरा कर दिया मैंने
नींद फिर से तुझे मेरी आंखो में देखकर लौट न जाये
चाँद कभी अंधेरो में छुपा देखा तो नहीं ॥
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सांस न जाने कब से भारी है
दिल भी धड़क रह है घबरा घबरा कर
क्या तेरे बिना लोग ऐसे ही मरा करते है ?
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तेरा नाम लिया और फिर चाँद को देखा
दिल में एक अजीब सा सवाल आया
ऐ चाँद क्या तुने कभी चाँद को देखा है !!
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कल रात बहुत देर तक तू मेरे साथ में थी
सुबह हुई तो तू मेरे पास ना थी
क्यों सपनो में ही नही जी लेते हम आपनी सारी जिंदगी !!
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तेरे जाने का गम दिन रात पिघलता है
और आंखो से अश्क बहते है झरने से
बरफ पिघल पिघल का पानी हो रही है
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हर पल बजती है कानों में एक धुन
जैसे तेरी पायल कि आवाज़ हो
तुम अपने पाँव ज़रा आहिस्ता आहिस्ता उठाकर चला करो ।
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एक डोर सी खींचे रहती है मुझको
जाता हूँ कही और कही और पहुंच जाता हूँ
खूंटे से बंधी गायें खूंटे से दूर जाये भी तो कैसे ।
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यह झील का कल कल करता नीला सा पानी
जैसे आसमान के प्यार का रंग समा गया है इसमे
कुछ दिनों से मेरा रंग भी कुछ बदला बदला सा है !!
तुम्हे देखकर आजकल चाँद ने आना छोड़ दिया ।
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tarun
(written at foster city and Lake Tahoe)