शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2007

Madhushala


सुबह से शाम तक कंप्यूटर, रात को तो चाहीये प्याला
काम करके जब थक जाऊं तो तब मुझको चाहीये हाला
यहाँ तो सब नीरस है और होठों पे प्यास बहुत है
हर शाम को ढूंढे आँखे, दील भी चाहे बस मधुशाला

मेरे घर की की एक ही राह है जो पहुंचे बस मधुशाला
मेरी आंखो कि एक ही चाह है जो ढूंढे बस एक प्याला
रात को मेरे ख्वाब में आये सुबह उठते ही मॅन ललचाये
हर दीन की मेरी एक दुआ है, की मिल जाये थोडी सी हाला

जीवनपथ में मुझको जीवनसाथी मिले तो प्याला
कभी जो मेरे कदम रूक जाये तो मुझको मील जाये हाला
जिंदगी की मुश्किल रहो पे चलना भी तो बहुत कठीन है
जब जब थक जाऊं मैं तब तब मील जाये मुझको मधुशाला....


यह मेरा एक प्रयास है बच्चन जी की मधुशाला में कुछ और पंक्तियाँ जोड़ने का ॥

-tarun

(written at agilent technologies)

1 टिप्पणी: