बहुत से बहाने है ज़िन्दगी में
न जाने कितने और रिश्ते भी तो है
देश विदेश के
और बहुत सारे किस्से है
समाज कि ऊँची नीची
छोटी बड़ी न जाने कितनी बातें है
मगर फिर भी न जाने क्यूँ
जब कुछ भी लिखने बैठता हूँ
तो सिर्फ ज़िक्र तेरा ही होता है
और मेरी हर नज़्म तेरे नाम से शुरू होकर
तुझपे ही ख़त्म होती है ...
कितना बेबस सा हूँ मैं .....
-तरुण
Bahut acchhi rachna.. Badhai..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया तरुण जी
जवाब देंहटाएंnice ! check the link for new poem and quotes ! :)
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