बंद कमरों में मूझे घुटन होती है
बंद कमरों में मेरी साँसे रूकती है
बंद कमरों में बहुत तडपता हूँ मैं
जब तुम होती थी तो इस घर के
खिड़कियाँ और दरवाज़े सब खुले रहते थे
अक्सर खिडकियों से ख्वाब आते थे
और दरवाजों पे ज़िंदगियाँ दस्तक देती थी
लेकिन
जब से तुम गयी हो
न ही कोई ख्वाब आता है और
न कभी कोई दस्तक होती है
और मैं बस इन बंद कमरों में पड़ा रहता है
मूझे बंद कमरों में बहुत घुटन होती है ....
-तरुण
Bahut hi acchhi rachna.. Badhai..
जवाब देंहटाएंaap kyoon likhte hain ye sab?aapke chehre se ye bilkul nahin lagta ki zindgi aise anubhav kabhi aapko de.ek poori duniya aapke chehre me hai.apne bare me aur bataiye.
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जवाब देंहटाएंदिलकश अलफ़ाज़