शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

इंतज़ार

वक़्त से कुछ न कहा मैंने 
वो आया और लौट गया 
रास्तो को भी कहाँ रोका था मैंने
न कितने मुसाफिर आये और चले गये 
दिन निकले और ढल गाए 
रातें भी ख़ामोशी से आयी 
और चुपचाप चली गयी 
चाँद ने भी मुझसे कुछ नहीं कहा 
मुझसे रात भर आँख बचाकर चमकता रहा 
एक तुम क्या गये
दुनिया बदल गयी मेरी 
लेकिन मैं फिर भी उसी जगह खड़ा रहा 
जहाँ तुम मूझे छोड़ गयी थी 
इस इंतज़ार में कि शायद 
कभी किसी बहाने से तुम लौट आओ 

-तरुण 

मंगलवार, 16 अगस्त 2011

बेबसी

बहुत से बहाने है ज़िन्दगी में 
न जाने कितने और रिश्ते भी तो है 
देश विदेश के 
और बहुत सारे किस्से है 
समाज कि ऊँची नीची 
छोटी बड़ी न जाने कितनी बातें है 
मगर फिर भी न जाने क्यूँ
जब कुछ भी लिखने बैठता हूँ 
तो सिर्फ ज़िक्र तेरा ही होता है 
और  मेरी हर नज़्म तेरे नाम से शुरू होकर 
तुझपे ही ख़त्म होती है ...
कितना बेबस सा हूँ मैं .....

-तरुण 

बहाना


बहुत मायूस था मैं
न जाने कितने दिनों से 
बहुत सोचा मगर कुछ समझ न पाया 
पर 
आज अचानक 
एक पुरानी किताब से 
तेरी तस्वीर जो निकली 
मूझे जैसे जीने 
फिर से एक बहाना मिल गया ..

-तरुण 

सोमवार, 15 अगस्त 2011

बंद कमरे

बंद कमरों में मूझे घुटन होती है 
बंद कमरों में मेरी साँसे रूकती है 
बंद कमरों में बहुत तडपता हूँ मैं 
जब तुम होती थी तो इस घर के 
खिड़कियाँ और दरवाज़े सब खुले रहते थे 
अक्सर खिडकियों से ख्वाब आते थे 
और दरवाजों पे ज़िंदगियाँ दस्तक देती थी 
लेकिन 
जब से तुम गयी हो 
न ही कोई ख्वाब आता है और 
न कभी कोई दस्तक होती है 
और मैं बस इन बंद कमरों में पड़ा रहता है 
मूझे बंद कमरों में बहुत घुटन होती है ....
-तरुण 

बुधवार, 10 अगस्त 2011

माँ

मैं अपने घर में तनहा नहीं रहता 
मेरे साथ मेरी माँ की दुआएं होती है 
जब दिन की मुशक्कत से थक कर 
मैं शाम को घर लौटता हूँ 
तो उनके सायों में मुझे सुकून मिलता है 
देर रात तक
मेरे बिस्तर के किनारे बैठके वो 
मुझे सोते हुए देखती है 
सुबह को उठाकर मुझे 
प्यार से वो
नयी उम्मीदों से मुझे वो जोडती है
मेरी माँ मुझसे बहुत दूर है 
लेकिन 
हर आहत पे मेरे करीब होती है 

-tarun