कभी ज़िन्दगी जीते जाने से फुर्सत नहीं मिलती
कभी इसके गम भुलाने से फुर्सत नहीं मिलती
कभी तुम रूठी रहती हो तो एहसास नहीं होता
कभी तुझको मनाने से फुर्सत नहीं मिलती
कभी मेरी तरफ आ जाती है जन्नत की सदाएँ भी
कभी एक आहट जगाने से फुर्सत नहीं मिलती
कभी इन आँखों में मिलती है खुशियाँ ज़माने की
कभी अश्को को बहाने से फुर्सत नहीं मिलती
कभी प्यालो मैं उतरते है मयक़दे शहर भर के
कभी एक जाम पी जाने से फुर्सत नहीं मिलती
कभी रात भर बैठकर चाँद से मैं तेरी बाते करता हूँ
कभी एक तेरा नाम लिए जाने से फुर्सत नहीं मिलती
-तरुण
सोमवार, 21 दिसंबर 2009
शनिवार, 12 दिसंबर 2009
उम्मीद
न जाने कितनी बार
गिरा था मैं
मगर हर बार
कभी पल दो पल में
और कभी कुछ देर ठहरकर
मैं उठ जाता था
और चल निकलता था अपने रास्तो पे
मगर उस दिन जब तुमने
मेरा हाथ छोड़ा था
मैं कुछ ऐसे गिरा था
कि अब तक नहीं उठ पाया हूँ
और अब तक गिरा हुआ मैं
बस एक दुआ मांगता हूँ
एक बार फिर से आकर
वैसे ही मुस्कुराकर
तुम अपना हाथ दे दो
तो मैं फिर उठ जाऊँगा
और मेरी यह ज़िन्दगी बच जाएगी ...
-तरुण
गिरा था मैं
मगर हर बार
कभी पल दो पल में
और कभी कुछ देर ठहरकर
मैं उठ जाता था
और चल निकलता था अपने रास्तो पे
मगर उस दिन जब तुमने
मेरा हाथ छोड़ा था
मैं कुछ ऐसे गिरा था
कि अब तक नहीं उठ पाया हूँ
और अब तक गिरा हुआ मैं
बस एक दुआ मांगता हूँ
एक बार फिर से आकर
वैसे ही मुस्कुराकर
तुम अपना हाथ दे दो
तो मैं फिर उठ जाऊँगा
और मेरी यह ज़िन्दगी बच जाएगी ...
-तरुण
गुरुवार, 10 दिसंबर 2009
I miss you India
यूँ तो सुबह यहाँ भी होती है
लेकिन सूरज चिड़ियों के संग
जहाँ घर घर जाकर सबको जगाता है
वो मेरा भारत है
यूँ तो दिन यहाँ भी गुजरता है
लेकिन जहाँ दिन का हर पल
हमारे साथ मिलकर शोर मचाता है
वो मेरा भारत है
यूँ तो शाम यहाँ भी ढलती है
लेकिन सुकून जहाँ शाम के साथ
हर नुक्कड़ हर घर मैं लौटकर आता है
वो मेरा भारत है
यूँ तो रात यहाँ भी जगती है
लेकिन जहाँ चाँद रात को
सबके लिए एक लौरी गाता है
वो मेरा भारत है
यूँ तो साल यहाँ भी जाते है
लेकिन जहाँ हर साल कितनी
यादो के मीठे से लम्हे दे जाता है
वो मेरा भारत है
यूँ तो ज़िंदगियाँ लोग यहाँ भी जीते है
लेकिन जहाँ इंसाँ जीवन के हर
रस को पीकर जाता है
वो मेरा भारत है
I miss you india ....
तरुण
शुक्रवार, 20 नवंबर 2009
त्रिवेणी
तेरे रिश्ते को कब का दफ़न कर आया हूँ
फिर भी तेरा एहसास है कि जाता नहीं
रिश्तो कि भी शायद कोई रूह होती होगी
*****
तेरी हर एक याद को दरियां में बहा आया हूँ
तेरी हर आहट को ख़ामोशी में सुला आया हूँ
आजकल बहुत अकेला अकेला सा लगता है
*****
एक बार रोते हुए माँ से चाँद को माँगा था
अब हर रात खुदा से एक तुझे मांगता हूँ
काश एक बार चाँद मेरे आँगन में उतर आये
*****
एक खंजर सा उतरता है सीने में
जब जब याद तुम्हारी आती है
एक खंजर सा उतरता है सीने में
जब जब याद तुम्हारी आती है
कुछ रिश्ते खून से लिखे होते है
******
कागज़ की किश्ती लिए एक दिन मैं
तेरा नाम लेकर समंदर में उतर गया था
वो समंदर अब तक मेरी आँखों से टपकता है
*******
तरुण
सोमवार, 2 नवंबर 2009
सड़के
हर रोज़ सुबह शाम
जिन सडको पे मैं
चलता हूँ दौड़ता हूँ
और अक्सर अपनी कार में
एक्सिलेरटर पे पैर लगाये
मैं सब तरफ भागता हूँ
उन सडको से कभी कभी
पल दो पल में रुक कर
पूछ लेता हूँ
क्या वो गुजरी है इस तरफ से
जानता तो हूँ
और यह अच्छी तरह से मालूम भी है
कि तुम न आओगी इस तरफ कभी
फिर भी शायद किसी रोज़
क्या पता
अनजाने में यूँही कुछ सोचते हुए
तुम गुज़र जाओ इन सडको से कभी
जिन सडको पे मैं दिन रात घूमता हूँ
भूली हुई सी तुम्हारी कुछ यादें लेकर ...
-तरुण
जिन सडको पे मैं
चलता हूँ दौड़ता हूँ
और अक्सर अपनी कार में
एक्सिलेरटर पे पैर लगाये
मैं सब तरफ भागता हूँ
उन सडको से कभी कभी
पल दो पल में रुक कर
पूछ लेता हूँ
क्या वो गुजरी है इस तरफ से
जानता तो हूँ
और यह अच्छी तरह से मालूम भी है
कि तुम न आओगी इस तरफ कभी
फिर भी शायद किसी रोज़
क्या पता
अनजाने में यूँही कुछ सोचते हुए
तुम गुज़र जाओ इन सडको से कभी
जिन सडको पे मैं दिन रात घूमता हूँ
भूली हुई सी तुम्हारी कुछ यादें लेकर ...
-तरुण
गुरुवार, 13 अगस्त 2009
सुबह
हजारों रातों को जलाकर
लाखो ख्वाबो को बनाकर
न कितने लम्हों के
एक एक तागें को पिरोकर
जिस सुबह को सजाया था
वो आज मिली है
आ मेरी उम्मीदों की दुल्हन
ज़रा कुर्सी पे मेरे सामने बैठ
कुछ देर मुझसे बात कर
मैं भी देखूं
जिसने इतना तरसाया है
न जाने कितनी रातो को जगाया है
वो सुबह कैसी है ...
-तरुण
लाखो ख्वाबो को बनाकर
न कितने लम्हों के
एक एक तागें को पिरोकर
जिस सुबह को सजाया था
वो आज मिली है
आ मेरी उम्मीदों की दुल्हन
ज़रा कुर्सी पे मेरे सामने बैठ
कुछ देर मुझसे बात कर
मैं भी देखूं
जिसने इतना तरसाया है
न जाने कितनी रातो को जगाया है
वो सुबह कैसी है ...
-तरुण
बुधवार, 15 जुलाई 2009
वरना ये दुनिया अधूरी है
तू मेरी है मैं तेरा हूँ
फिर भी सनम क्यूँ ये दूरी है
तू पास है मेरे, मेरे साथ है तू
फिर भी क्या मजबूरी है
तुम कहो जो भी कहना है
लेकिन चुप रहना भी ज़रूरी है
हम साथ है तो ये जहाँ है हँसी
वरना ये दुनिया भी अधूरी है
तू मेरी है मैं तेरा हूँ ....
-तरुण
फिर भी सनम क्यूँ ये दूरी है
तू पास है मेरे, मेरे साथ है तू
फिर भी क्या मजबूरी है
तुम कहो जो भी कहना है
लेकिन चुप रहना भी ज़रूरी है
हम साथ है तो ये जहाँ है हँसी
वरना ये दुनिया भी अधूरी है
तू मेरी है मैं तेरा हूँ ....
-तरुण
शुक्रवार, 26 जून 2009
एक बार
अपनी ज़िन्दगी को छोड़कर
अपनी हर खुशी को छोड़कर
जो बैठे है
बस एक तेरा नाम लेकर
एक बार
उनकी तरफ़ भी
आंखे उठाकर
मुस्कुराकर देख लो
देखना फिर
न जाने कितनी
आंखे जगमगाती है
न जाने कितने चेहरे खिल जाते है
और न जाने कितनी जिन्दगियाँ संवर जाती है
-तरुण
अपनी हर खुशी को छोड़कर
जो बैठे है
बस एक तेरा नाम लेकर
एक बार
उनकी तरफ़ भी
आंखे उठाकर
मुस्कुराकर देख लो
देखना फिर
न जाने कितनी
आंखे जगमगाती है
न जाने कितने चेहरे खिल जाते है
और न जाने कितनी जिन्दगियाँ संवर जाती है
-तरुण
शुक्रवार, 13 मार्च 2009
वो यहीं कहीं है
गर्मी की धूप से जलती धरती पर जब
बारिश की ठंडी बूंदे गिरती है
तब अह्सास होता है
सर्दी की ठंडी सुबह को जब कोहरे को चीरकर
कुछ नरम सूरज की किरने निकलती है
तब अह्सास होता है
बहार के मौसम में छोटे छोटे पौधों पर जब
नन्ही नन्ही कलियाँ खिलती है
तब अह्सास होता है
नन्हे छोटे बच्चो के मुख पर जब
पहली मुस्कान उभरती है
तब अह्सास होता है
जब बरसो से हारे इंसान को कुछ
उम्मीद की किरणे दिखती है
तब अह्सास होता है
जब कुछ लम्हों को जीतकर "मैं" उससे बड़ा होने लगता है
पर जब उस विश्व विजयेता पर भी वक्त की बिजली गिरती है
तब अह्सास होता है
कि वो है यहीं कहीं है हमें देख रहा है
-तरुण
बारिश की ठंडी बूंदे गिरती है
तब अह्सास होता है
सर्दी की ठंडी सुबह को जब कोहरे को चीरकर
कुछ नरम सूरज की किरने निकलती है
तब अह्सास होता है
बहार के मौसम में छोटे छोटे पौधों पर जब
नन्ही नन्ही कलियाँ खिलती है
तब अह्सास होता है
नन्हे छोटे बच्चो के मुख पर जब
पहली मुस्कान उभरती है
तब अह्सास होता है
जब बरसो से हारे इंसान को कुछ
उम्मीद की किरणे दिखती है
तब अह्सास होता है
जब कुछ लम्हों को जीतकर "मैं" उससे बड़ा होने लगता है
पर जब उस विश्व विजयेता पर भी वक्त की बिजली गिरती है
तब अह्सास होता है
कि वो है यहीं कहीं है हमें देख रहा है
-तरुण
गुरुवार, 12 मार्च 2009
इंतज़ार
आधी ज़िन्दगी तो गुज़र गयी
इसी इंतज़ार में कि तुम आओगी
तुम्हारी उम्मीद पे कितनी ही राते जल गयी
न जाने कितने चाँद तुम्हारे इंतज़ार में बुझ गए
वो बरसो से सुबह जो आकर मेरे कानो में कहती थी
कि आज तो वो आएगी
वो भी बस अब थक गयी है
ये सदियों से दिन काटते काटते मैं भी कटता जा रहा हूँ
हर लम्हा मैं अहिस्ता अहिस्ता टूटता जा रहा हूँ
कहाँ हो तुम चली आओ
इतना इंतज़ार क्या काफ़ी नही इस ज़िन्दगी के लिए ...
-तरुण
इसी इंतज़ार में कि तुम आओगी
तुम्हारी उम्मीद पे कितनी ही राते जल गयी
न जाने कितने चाँद तुम्हारे इंतज़ार में बुझ गए
वो बरसो से सुबह जो आकर मेरे कानो में कहती थी
कि आज तो वो आएगी
वो भी बस अब थक गयी है
ये सदियों से दिन काटते काटते मैं भी कटता जा रहा हूँ
हर लम्हा मैं अहिस्ता अहिस्ता टूटता जा रहा हूँ
कहाँ हो तुम चली आओ
इतना इंतज़ार क्या काफ़ी नही इस ज़िन्दगी के लिए ...
-तरुण
मंगलवार, 10 मार्च 2009
मुझसे पूछिये
होता है क्या हिज्र-ए-ग़म मुझसे पूछिये
दिल में क्यूँ है ज़ोर-ए-सितम मुझसे पूछिये
दरवाज़े पे खड़े हो मगर दस्तक न कीजिए
इस घर में वो अब रहते है कम मुझसे पूछिये
हाथ क्यूँ बढाता है यूँ अजनबियों की तरफ़
अपनों के लिए कब उठे कदम मुझसे पूछिये
खुदा से क्या कहूँ की वो भी न मेरा हुआ
मेरे पास है बस मेरे ही ग़म मुझसे पूछिये
कबसे खामोश छुपाये बैठा हूँ हर दर्द को मैं
हर आवाज़ पे उठते है ये जख्म मुझसे पूछिये
-तरुण
दिल में क्यूँ है ज़ोर-ए-सितम मुझसे पूछिये
दरवाज़े पे खड़े हो मगर दस्तक न कीजिए
इस घर में वो अब रहते है कम मुझसे पूछिये
हाथ क्यूँ बढाता है यूँ अजनबियों की तरफ़
अपनों के लिए कब उठे कदम मुझसे पूछिये
खुदा से क्या कहूँ की वो भी न मेरा हुआ
मेरे पास है बस मेरे ही ग़म मुझसे पूछिये
कबसे खामोश छुपाये बैठा हूँ हर दर्द को मैं
हर आवाज़ पे उठते है ये जख्म मुझसे पूछिये
-तरुण
सोमवार, 9 मार्च 2009
दिन शराब के
तुम क्या गए फिर लौट आए दिन शराब के
भीगती साँसे डूबती आँखे दिल-ऐ-बेताब के
रातो को बरसते है बादल कुछ ऐसे टूटके
छलक जाते है शब-ऐ-ग़म अश्क माहताब के
मत जाना चमन में कि माहौल ठीक नही
बहकी है कलियाँ बदले है मिजाज़ गुलाब के
मयक़दे में भी गए मगर तेरा ज़िक्र न गया
पैमानों में भी उतरे है रंग इक तेरे शबाब के
इतना नासमझ न बन, न और उम्मीद कर
तेरे अश्को से न बदलेंगे लफ्ज़ उसके जवाब के
-तरुण
भीगती साँसे डूबती आँखे दिल-ऐ-बेताब के
रातो को बरसते है बादल कुछ ऐसे टूटके
छलक जाते है शब-ऐ-ग़म अश्क माहताब के
मत जाना चमन में कि माहौल ठीक नही
बहकी है कलियाँ बदले है मिजाज़ गुलाब के
मयक़दे में भी गए मगर तेरा ज़िक्र न गया
पैमानों में भी उतरे है रंग इक तेरे शबाब के
इतना नासमझ न बन, न और उम्मीद कर
तेरे अश्को से न बदलेंगे लफ्ज़ उसके जवाब के
-तरुण
गुरुवार, 5 मार्च 2009
सालगिरह
आओ इस सालगिरह पे
हम वक्त की मुठ्ठी को खोलकर
उस हर लम्हे को निकाले
जब हम साथ में मुस्कुराये थे
उस हर एक लफ्ज़ को फिर से बोले
फिर से उस हर एक वादे को दोहराएँ
जो मैंने तुमसे और तुमने मुझसे किया था
इस सालगिरह पे चलो
हम अपनी कसमो की फिर गठडी खोले
और अपनी उन कसमो को
फिर से उठा ले
फिर से उनको कुछ साँसे देदे
जो साथ रहकर हमने खाई थी
आओ इस सालगिरह पे
हम अपने अतीत की हर मीठी याद को लेकर
अपने नए कल की सुबह को सजाये
आओ इस सालगिरह पे हम अगली सालगिरह को
एक अनोखा तोहफा देकर जाए
ऐसे हम अपनी सालगिरह मनाये
-तरुण
हम वक्त की मुठ्ठी को खोलकर
उस हर लम्हे को निकाले
जब हम साथ में मुस्कुराये थे
उस हर एक लफ्ज़ को फिर से बोले
फिर से उस हर एक वादे को दोहराएँ
जो मैंने तुमसे और तुमने मुझसे किया था
इस सालगिरह पे चलो
हम अपनी कसमो की फिर गठडी खोले
और अपनी उन कसमो को
फिर से उठा ले
फिर से उनको कुछ साँसे देदे
जो साथ रहकर हमने खाई थी
आओ इस सालगिरह पे
हम अपने अतीत की हर मीठी याद को लेकर
अपने नए कल की सुबह को सजाये
आओ इस सालगिरह पे हम अगली सालगिरह को
एक अनोखा तोहफा देकर जाए
ऐसे हम अपनी सालगिरह मनाये
-तरुण
बुधवार, 4 मार्च 2009
मौसम बदल गए
हम इस कदर तेरी जुल्फ के सायें में ढल गए
अपना ही पता ढूंढने हम घर से निकल गए
तुमसे उठी है बात तो अब तुम ही जवाब दो
क्यूँ ऐसे तुम्हे देखकर सब मौसम बदल गए
यूँ तो बहुत करीब था तेरे घर का फासला
अपने ही दरवाज़े पे लेकिन हम फिसल गए
आँखों से न दो जवाब जब होठो की बात हो
आँखों से सुनी है जब भी तो हम मचल गए
रात भर शराब पीते रहे पर होश न गया
बोतल में तुम्हे देखकर हम ऐसे संभल गए
-तरुण
अपना ही पता ढूंढने हम घर से निकल गए
तुमसे उठी है बात तो अब तुम ही जवाब दो
क्यूँ ऐसे तुम्हे देखकर सब मौसम बदल गए
यूँ तो बहुत करीब था तेरे घर का फासला
अपने ही दरवाज़े पे लेकिन हम फिसल गए
आँखों से न दो जवाब जब होठो की बात हो
आँखों से सुनी है जब भी तो हम मचल गए
रात भर शराब पीते रहे पर होश न गया
बोतल में तुम्हे देखकर हम ऐसे संभल गए
-तरुण
मंगलवार, 3 मार्च 2009
खुदा तू भी इतना परेशाँ निकला
मेरे दर्द-ए-इश्क का इक निशाँ निकला
ओ चाँद तू भी बड़ा बेईमाँ निकला
मैं जिसकी रात भर राह देखता रहा
वो तो मेरी मय्यत का कारवाँ निकला
कल मैंने खंजर से जिसको कत्ल किया
वो तो मेरा एक पुराना रहनुमाँ निकला
मैं जिसकी आवाज़ के लिए तरसता था
वो मेरा सनम बरसों का बेजुबाँ निकला
मैं क्यूँ तुझको सुनाता था दास्ताँ अपनी
ओ खुदा तू भी तो मुझ सा परेशाँ निकला
वो जो ज़माने भर का मसीहा बनता था
वो भी अन्दर से टूटा हुआ इंसाँ निकला
-तरुण
ओ चाँद तू भी बड़ा बेईमाँ निकला
मैं जिसकी रात भर राह देखता रहा
वो तो मेरी मय्यत का कारवाँ निकला
कल मैंने खंजर से जिसको कत्ल किया
वो तो मेरा एक पुराना रहनुमाँ निकला
मैं जिसकी आवाज़ के लिए तरसता था
वो मेरा सनम बरसों का बेजुबाँ निकला
मैं क्यूँ तुझको सुनाता था दास्ताँ अपनी
ओ खुदा तू भी तो मुझ सा परेशाँ निकला
वो जो ज़माने भर का मसीहा बनता था
वो भी अन्दर से टूटा हुआ इंसाँ निकला
-तरुण
रविवार, 1 मार्च 2009
इक तेरा ग़म
इक तेरा ग़म सह सहकर हम कल रात भर रोते रहे
आँखों की तरह शब को भी हम अश्को में डुबोते रहे
तेरा जाना हमे मंज़ूर था तेरा जाना हम पी भी गए
तेरी यादों का पर जो सुरूर है उसमे बस हम खोते रहे
वादा किया भूल गए तुम ख्वाब में भी न हमसे मिले
तेरे इक ख्वाब की उम्मीद में हम कितने दिन सोते रहे
इक तेरा रिश्ता था बहुत ये दुनिया कब हमे मंजूर थी
तुम ही कहो क्यूँ अब तेरे बिन सब मेरे अपने होते रहे
क्या कहूँ कैसे कहूँ मेरे लफ्ज़ तो जैसे सब बुझ गए
तेरी आवाजो को लेकिन हम इन सांसो में पिरोते रहे
इक तेरा ग़म सह सहकर हम कल रात भर रोते रहे ...
-तरुण
आँखों की तरह शब को भी हम अश्को में डुबोते रहे
तेरा जाना हमे मंज़ूर था तेरा जाना हम पी भी गए
तेरी यादों का पर जो सुरूर है उसमे बस हम खोते रहे
वादा किया भूल गए तुम ख्वाब में भी न हमसे मिले
तेरे इक ख्वाब की उम्मीद में हम कितने दिन सोते रहे
इक तेरा रिश्ता था बहुत ये दुनिया कब हमे मंजूर थी
तुम ही कहो क्यूँ अब तेरे बिन सब मेरे अपने होते रहे
क्या कहूँ कैसे कहूँ मेरे लफ्ज़ तो जैसे सब बुझ गए
तेरी आवाजो को लेकिन हम इन सांसो में पिरोते रहे
इक तेरा ग़म सह सहकर हम कल रात भर रोते रहे ...
-तरुण
मंगलवार, 24 फ़रवरी 2009
तेरे नाम से पी ले
मिलता नही है जाम चलो तेरे नाम से पी ले
रात है बहुत दूर तो चलो अब शाम से पी ले
साकी नही है कोई आज न मयखाना है मेरा
शराब मिले कभी तो कभी ख्याल-ऐ-जाम से पी ले
बाज़ार में है तो क्या ज़रूरी कोई खरीदार भी मिले
मिलता है कभी दाम तो कभी बेदाम से पी ले
उसका है शहर में नाम तो तेरा भी क्यूँ न हो
शोहरत मिले कभी तो कभी बदनाम से पी ले
खुदा के लिए छोड़ी कभी खुदा ने पिलाई तुझे
हर बोतल में है भगवान् तो कभी राम से पी ले
कितना चलेगा तू इन राहो की न कोई मंजिल
बैठ कुछ पल को कही आज और आराम से पी ले
-तरुण
रात है बहुत दूर तो चलो अब शाम से पी ले
साकी नही है कोई आज न मयखाना है मेरा
शराब मिले कभी तो कभी ख्याल-ऐ-जाम से पी ले
बाज़ार में है तो क्या ज़रूरी कोई खरीदार भी मिले
मिलता है कभी दाम तो कभी बेदाम से पी ले
उसका है शहर में नाम तो तेरा भी क्यूँ न हो
शोहरत मिले कभी तो कभी बदनाम से पी ले
खुदा के लिए छोड़ी कभी खुदा ने पिलाई तुझे
हर बोतल में है भगवान् तो कभी राम से पी ले
कितना चलेगा तू इन राहो की न कोई मंजिल
बैठ कुछ पल को कही आज और आराम से पी ले
-तरुण
सोमवार, 23 फ़रवरी 2009
मुश्किल है
हर बार तेरे दर से खाली लौट आना मुश्किल है
तुझसे नज़रे मिलाकर फिर झुकाना मुश्किल है
तेरी आँखों में न जाने कितने चाँद मैंने देखे है
तेरे बिना अब यूँ तनहा राते बिताना मुश्किल है
तुम कहो तो हर एक साँस अपनी छोड़ आऊं मैं
तेरी यादो को लेकिन अब भूल पाना मुश्किल है
तेरे चेहरे ने कितनी बार मेरी सुबह सजाई है
बिन तेरे रातो को कोई ख्वाब बनाना मुश्किल है
तेरा हाथ छूने से मुझे एक रूह मिल गयी थी
तेरे उस एहसास से ख़ुद को भुलाना मुश्किल है
-तरुण
तुझसे नज़रे मिलाकर फिर झुकाना मुश्किल है
तेरी आँखों में न जाने कितने चाँद मैंने देखे है
तेरे बिना अब यूँ तनहा राते बिताना मुश्किल है
तुम कहो तो हर एक साँस अपनी छोड़ आऊं मैं
तेरी यादो को लेकिन अब भूल पाना मुश्किल है
तेरे चेहरे ने कितनी बार मेरी सुबह सजाई है
बिन तेरे रातो को कोई ख्वाब बनाना मुश्किल है
तेरा हाथ छूने से मुझे एक रूह मिल गयी थी
तेरे उस एहसास से ख़ुद को भुलाना मुश्किल है
-तरुण
गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009
वो लड़की बहुत याद आती है
हर शाम कुछ ऐसे मुस्कुराती है
कि वो लड़की बहुत याद आती है
चाँद छूपता है जब बादलो में कभी
उसकी शरारते आँखों में छलक आती है
मेरे दरवाज़े पे दस्तक देता है कोई
पर आवाजे अपना रास्ता भूल जाती है
तेरे वादों पे जिऊं कब तक ऐसे
हर साँस ये कहकर लौट जाती है
कुछ ऐसा है तुमसे ये रिश्ता मेरा
मुस्कुराहटें भी आँखे नम कर जाती है
-तरुण
कि वो लड़की बहुत याद आती है
चाँद छूपता है जब बादलो में कभी
उसकी शरारते आँखों में छलक आती है
मेरे दरवाज़े पे दस्तक देता है कोई
पर आवाजे अपना रास्ता भूल जाती है
तेरे वादों पे जिऊं कब तक ऐसे
हर साँस ये कहकर लौट जाती है
कुछ ऐसा है तुमसे ये रिश्ता मेरा
मुस्कुराहटें भी आँखे नम कर जाती है
-तरुण
बुधवार, 11 फ़रवरी 2009
अब मुझको सो जाने दो
अपने पहलू में आज मुझे छुप जाने दो
बहुत थक गया हूँ अब मुझे सो जाने दो
तुम भी चले आओ मयखाने में आज की रात
आज की रात को मयखाने में डूब जाने दो
जब तेरे बारे में लिखता हूँ तो कुछ सूझता नही
तुम अपने तस्वीर को कागज़ को उतर जाने दो
तेरी आँखों से मैंने मोहब्बत का चलन सिखा है
तुम इन आँखों को अब मुझको न नज़र आने दो
क्या लेकर आया था जब तुम मिले थे मुझको
उस प्यार को फिर फिजाओ में बिखर जाने दो
बहुत थक गया हूँ अब मुझको सो जाने दो ...
-तरुण
बहुत थक गया हूँ अब मुझे सो जाने दो
तुम भी चले आओ मयखाने में आज की रात
आज की रात को मयखाने में डूब जाने दो
जब तेरे बारे में लिखता हूँ तो कुछ सूझता नही
तुम अपने तस्वीर को कागज़ को उतर जाने दो
तेरी आँखों से मैंने मोहब्बत का चलन सिखा है
तुम इन आँखों को अब मुझको न नज़र आने दो
क्या लेकर आया था जब तुम मिले थे मुझको
उस प्यार को फिर फिजाओ में बिखर जाने दो
बहुत थक गया हूँ अब मुझको सो जाने दो ...
-तरुण
मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009
कौन किसको माँगा करता है
written in response of a message at orkut
(http://www.orkut.com/Main#CommMsgs.aspx?cmm=17146748&tid=5298475366884671938&na=4&nst=1&nid=17146748-5298475366884671938-5299850108606710210 )
वो मेरे अश्को पे बस मुस्कुराया करता है
मैं वफ़ा करती हूँ वो दिल दुखाया करता है
नही जानता वो की दर्द-ऐ-मोहब्बत क्या है
जो अँधेरी रातो में वो चिराग जलाया करता है
मुझसे पूछो अगर तो मैं नाम उसका बतलाऊँ
कौन मेरी मजार पे अब तक फूल बिछाया करता है
काश तुम होते अगर यहाँ तो तुम्हे भी दिखलाती
ये दिल कैसे आँखों में अश्को को छुपाया करता है
चले जाओ लेकिन देखेंगे कौन भूलता है किसको
कौन हर सुबह दुआओं में किसको माँगा करता है
-तरुण
(http://www.orkut.com/Main#CommMsgs.aspx?cmm=17146748&tid=5298475366884671938&na=4&nst=1&nid=17146748-5298475366884671938-5299850108606710210 )
वो मेरे अश्को पे बस मुस्कुराया करता है
मैं वफ़ा करती हूँ वो दिल दुखाया करता है
नही जानता वो की दर्द-ऐ-मोहब्बत क्या है
जो अँधेरी रातो में वो चिराग जलाया करता है
मुझसे पूछो अगर तो मैं नाम उसका बतलाऊँ
कौन मेरी मजार पे अब तक फूल बिछाया करता है
काश तुम होते अगर यहाँ तो तुम्हे भी दिखलाती
ये दिल कैसे आँखों में अश्को को छुपाया करता है
चले जाओ लेकिन देखेंगे कौन भूलता है किसको
कौन हर सुबह दुआओं में किसको माँगा करता है
-तरुण
बुधवार, 14 जनवरी 2009
तलाश
अपने हाथ को दे दो
मेरे हाथो में ऐसे
कि रिश्ता सा एक जुड़ जाए
तेरी साँसों का कतरा कतरा
मेरी नस नस में घुल जाए
इतना करीब मेरे आ जाओ
जुड़ जाओ मुझसे ऐसे
कि जब भी मैं खोलूं
आंखे अपनी
बस एक तेरा चेहरा ही नज़र आए
मुझमे मिल जाओ तुम कुछ ऐसे
कि मेरे इस जिस्म को
वो रूह मिल जाए
जिसके लिए न जाने कब से
तरस रहा हूँ तड़प रहा हूँ
न जाने कब से
एक कोरा कागज़ सा
मैं गलियां गलियां घूम रहा हूँ
न जाने कितनी सदियों से
मैं बस तुझको ढूंढ रहा हूँ
आज मिले हो तो बस
एक बार ऐसे मिल जाओ
मेरी इन साँसों को तेरी खुशबू मिल जाए
और जो मेरी तनहा सी ज़िन्दगी है
इसको तेरी आँखों का चाँद मिल जाए
-तरुण
मेरे हाथो में ऐसे
कि रिश्ता सा एक जुड़ जाए
तेरी साँसों का कतरा कतरा
मेरी नस नस में घुल जाए
इतना करीब मेरे आ जाओ
जुड़ जाओ मुझसे ऐसे
कि जब भी मैं खोलूं
आंखे अपनी
बस एक तेरा चेहरा ही नज़र आए
मुझमे मिल जाओ तुम कुछ ऐसे
कि मेरे इस जिस्म को
वो रूह मिल जाए
जिसके लिए न जाने कब से
तरस रहा हूँ तड़प रहा हूँ
न जाने कब से
एक कोरा कागज़ सा
मैं गलियां गलियां घूम रहा हूँ
न जाने कितनी सदियों से
मैं बस तुझको ढूंढ रहा हूँ
आज मिले हो तो बस
एक बार ऐसे मिल जाओ
मेरी इन साँसों को तेरी खुशबू मिल जाए
और जो मेरी तनहा सी ज़िन्दगी है
इसको तेरी आँखों का चाँद मिल जाए
-तरुण
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