ऑफिस से लौटकर घर
और घर में
यूँ बैठता हूँ तन्हाइयो के साथ
जैसे बहुत पुरानी
एक दोस्ती है उनसे
फिर अहिस्ता अहिस्ता
दबे होठो से
देर तक उनसे बातें करता हूँ
और अक्सर रात को बिस्तर पे
उनकी कुछ बातें जब याद आती है
तो एक मुस्कान चेहरे पर आ जाती है
धीरे धीरे नींद मेरी आँखों में चली आती है
और जब उठता हूँ तो
फिर से वही सुबह हाथ उठाये बुलाती है
और कुछ देर में
उन तनहाइयो को
घर छोड़कर मैं
दिन की कशमकश में खो जाता हूँ
-तरुण
bahut sundar likha
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