जो वादे किए नही कभी वो निभाऊं भी तो कैसे
भीड़ में यूं लगता है की हर चेहरा मेरा अपना है
लौटकर उस अजनबी से घर में जाऊं भी तो कैसे
कभी पैमाने छलक गए , कभी मयखाना नही मिला
तुझे भुलाने की कोई और दवा अब पाऊँ भी तो कैसे
तनहा ही चला था सफर पे, अकेले ही जाना है
तेरे दो पल के साथ पे ज़िंदगी बिताऊँ भी तो कैसे है
शिकायत इस दिल से, एक गिला ख़ुद से भी है
तेरी उम्मीदों पे बस जिया, अब वो भुलाऊँ भी तो कैसे
तेरी उस मोहब्बत कर क़र्ज़ लौटाऊँ भी तो कैसे ...
-तरुण
तनहा ही चला था सफर पे, अकेले ही जाना है
जवाब देंहटाएंतेरे दो पल के साथ पे ज़िंदगी बिताऊँ भी तो कैसे
wah wah! bahut khub likha hai!