meri kuch nazme,kuch ghazale, kuch geet aur kuch kavitayen
सोमवार, 7 अप्रैल 2008
लकीर
हर सुबह अपने हाथो की लकीरों को देखता हूँ हर सुबह उन लकीरों मैं एक नयी लकीर को ढूंढता हूँ क्या मालूम मेरी रातो की दुआओं को सुनकर खुदा ने मेरे हाथ में तेरी एक लकीर बना दी हो
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