शनिवार, 22 मार्च 2008

कभी मेरी सुनो कभी अपनी कहो

कभी मेरी सुनो कभी अपनी कहो
कुछ बात मगर तुम करती रहो

मिलता रहूँ मैं तुमसे ख्वाबो में
ऐसे मेरी आंखो में तुम सिमटी रहो

होठो पे रहे एक खामोशी
आँखों से तुम सब कहती रहो

मैं बैठकर तुमको देखता रहूँ
तुम धड़कन मेरे दिल की सुनती रहो

आए न कोई फासला कभी दरम्याँ
ये वादा तुम मुझसे करती रहो

कभी मेरी सुनो कभी अपनी कहो ...


-tarun

1 टिप्पणी:

  1. कभी मेरी सुनो कभी अपनी कहो
    कुछ बात मगर तुम करती रहो


    Hmmm....Ati sunder!

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