मंगलवार, 18 मार्च 2008

लड़कपन की यादें

एक चंचल भँवरे सा जब मैं हवाओ में उड़ता फिरता था
कभी इस बगियाँ में जाता था , कभी उन फूलों पे गिरता था

सपनो में खोया रहता था मैं, जब परियों की बातें करता था
कभी तारो को पकड़ता था, कभी चाँद पे मैं मिलता था

रातो को जागता रहता था मैं, जब सुबह के सपने बुनता था
कभी नींद देर से खुलती थी, कभी बिस्तर से मैं न निकलता था

मैं भी मोहब्बत करता था , जब मैं भी किसी पे मरता था
कभी उसकी गलियों से गुजरता था, कभी मुस्कानों पे उसकी गिरता था

किताबो से भागता रहता था मैं, जब इम्तिहानो से जी चुराता था
कभी पढते पढते सोता था, कभी सोते सोते मैं पढता था

एक चंचल भंवरे सा जब मैं हवाओं में उड़ता फिरता था .....

2 टिप्‍पणियां:

  1. मैं भी मोहब्बत करता था , जब मैं भी किसी पे मरता था
    कभी उसकी गलियों से गुजरता था, कभी मुस्कानों पे उसकी गिरता था

    किताबो से भागता रहता था मैं, जब इम्तिहानो से जी चुराता था
    कभी पढते पढते सोता था, कभी सोते सोते मैं पढता था
    :):)bahut hi sundar bhav,bachpan ki yaad aagayi,beautiful

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  2. रातो को जागता रहता था मैं, जब सुबह के सपने बुनता था
    कभी नींद देर से खुलती थी, कभी बिस्तर से मैं न निकलता था

    मैं भी मोहब्बत करता था , जब मैं भी किसी पे मरता था
    कभी उसकी गलियों से गुजरता था, कभी मुस्कानों पे उसकी गिरता था


    Ur all creations are so very beautiful...saare feelings bohot hi sundar hai...

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