वो हर सुबह तुझे ऑफिस में ढूंढना याद आता है
और दिन भर तुझे छुप छुप के देखना याद आता है
वो हर बात पे तुझे फ़ोन करना, तुझसे पूछना और
वो बिना बात के तेरे फ़ोन की घंटी बजाना याद आता है
वो ज़रा ज़रा सी देर में उठकर तेरे करीब से गुजरना
कभी पानी लेने का, कभी गिराने का वो बहाना याद आता है
वो चाये के लिए तुझे बुलाना तेरे करीब जाना और
वो खाने की मेज़ पे तेरे आने तक कुछ न खाना याद आता है
वो घंटो तक बालकनी में खड़े होकर तेरा इंतज़ार करना और
वो तेरे जाने के बाद ऑफिस से निकलना याद आता है
-तरुण
bahut hi bhav sampurn,one of ur best creation
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