हर शाम हमसे मिला करो
कोई बात हमसे किया करो
आए है हम भी तेरे शहर में
एक नज़र हमको भी दिया करो
आँखों में मेरी जो ख्वाब है
उन ख्वाबो में दस्तक किया करो
कभी नाम लेकर बुलाओ हमको
कभी याद हमे भी किया करो
बैठे है हम भी तेरी राह में
देखकर हमको भी कुछ कहा करो
कोई बात हमसे भी किया करो
-तरुण
सोमवार, 31 मार्च 2008
शनिवार, 22 मार्च 2008
कभी मेरी सुनो कभी अपनी कहो
कभी मेरी सुनो कभी अपनी कहो
कुछ बात मगर तुम करती रहो
मिलता रहूँ मैं तुमसे ख्वाबो में
ऐसे मेरी आंखो में तुम सिमटी रहो
होठो पे रहे एक खामोशी
आँखों से तुम सब कहती रहो
मैं बैठकर तुमको देखता रहूँ
तुम धड़कन मेरे दिल की सुनती रहो
आए न कोई फासला कभी दरम्याँ
ये वादा तुम मुझसे करती रहो
कभी मेरी सुनो कभी अपनी कहो ...
-tarun
कुछ बात मगर तुम करती रहो
मिलता रहूँ मैं तुमसे ख्वाबो में
ऐसे मेरी आंखो में तुम सिमटी रहो
होठो पे रहे एक खामोशी
आँखों से तुम सब कहती रहो
मैं बैठकर तुमको देखता रहूँ
तुम धड़कन मेरे दिल की सुनती रहो
आए न कोई फासला कभी दरम्याँ
ये वादा तुम मुझसे करती रहो
कभी मेरी सुनो कभी अपनी कहो ...
-tarun
गुरुवार, 20 मार्च 2008
तुझे साथ मेरा निभाना है
ऐ रात तुझे न ढलने दूंगा, तुझे साथ मेरा निभाना है
कुछ ख्वाबो को जीना है, कुछ उम्मीदों को जगाना है
आसमाँ कि सारी उम्मीदों को एक एक करके संजोना है
कुछ मुस्कानों को जगाना है कुछ भूखे बच्चो को सुलाना है
दुनिया में फैली नफ़रत को एक प्यार का मतलब सिखाना है
कुछ जुबाँ पे फूल खिलाने है कुछ आदमी को इन्साँ बनाना है
वो देता है जब देता है, लेता है तो भी कुछ कहता नही
कुछ उसकी मर्जी से जीना है , कुछ अपनी तक्दीरो को बनाना है
तेरे मेरे इस रिश्ते को एक मायना अभी देना है
कुछ कसमें अभी खानी है , कुछ वादों को निभाना है
-तरुण
कुछ ख्वाबो को जीना है, कुछ उम्मीदों को जगाना है
आसमाँ कि सारी उम्मीदों को एक एक करके संजोना है
कुछ मुस्कानों को जगाना है कुछ भूखे बच्चो को सुलाना है
दुनिया में फैली नफ़रत को एक प्यार का मतलब सिखाना है
कुछ जुबाँ पे फूल खिलाने है कुछ आदमी को इन्साँ बनाना है
वो देता है जब देता है, लेता है तो भी कुछ कहता नही
कुछ उसकी मर्जी से जीना है , कुछ अपनी तक्दीरो को बनाना है
तेरे मेरे इस रिश्ते को एक मायना अभी देना है
कुछ कसमें अभी खानी है , कुछ वादों को निभाना है
-तरुण
मंगलवार, 18 मार्च 2008
लड़कपन की यादें
एक चंचल भँवरे सा जब मैं हवाओ में उड़ता फिरता था
कभी इस बगियाँ में जाता था , कभी उन फूलों पे गिरता था
सपनो में खोया रहता था मैं, जब परियों की बातें करता था
कभी तारो को पकड़ता था, कभी चाँद पे मैं मिलता था
रातो को जागता रहता था मैं, जब सुबह के सपने बुनता था
कभी नींद देर से खुलती थी, कभी बिस्तर से मैं न निकलता था
मैं भी मोहब्बत करता था , जब मैं भी किसी पे मरता था
कभी उसकी गलियों से गुजरता था, कभी मुस्कानों पे उसकी गिरता था
किताबो से भागता रहता था मैं, जब इम्तिहानो से जी चुराता था
कभी पढते पढते सोता था, कभी सोते सोते मैं पढता था
एक चंचल भंवरे सा जब मैं हवाओं में उड़ता फिरता था .....
कभी इस बगियाँ में जाता था , कभी उन फूलों पे गिरता था
सपनो में खोया रहता था मैं, जब परियों की बातें करता था
कभी तारो को पकड़ता था, कभी चाँद पे मैं मिलता था
रातो को जागता रहता था मैं, जब सुबह के सपने बुनता था
कभी नींद देर से खुलती थी, कभी बिस्तर से मैं न निकलता था
मैं भी मोहब्बत करता था , जब मैं भी किसी पे मरता था
कभी उसकी गलियों से गुजरता था, कभी मुस्कानों पे उसकी गिरता था
किताबो से भागता रहता था मैं, जब इम्तिहानो से जी चुराता था
कभी पढते पढते सोता था, कभी सोते सोते मैं पढता था
एक चंचल भंवरे सा जब मैं हवाओं में उड़ता फिरता था .....
बुधवार, 5 मार्च 2008
वो भी क्या दिन थे
वो भी क्या दिन थे , जब आसमानों में परियाँ रहती थी
चाँद ज़मीं पे उतरता था जब दादी माँ कहानियाँ कहती थी
जब नादाँ पंछियों से हम दिन भर चहकते रहते थे
कभी टीचर गुस्सा करती थी, कभी मोहल्ले की शिकायत रहती थी
जब सुबह का सूरज आकर चुपके से हमे जगाता था
रात को जब डैडी कहानी सुनाते थे और माँ सोने को कहती थी
जब छोटी छोटी किताबो में बड़ी बड़ी तस्वीरे होती थी
कभी बादल आँखे दिखाते है कभी नदियाँ आँगन में बहती थी
जब एक झूठे रोने पे सब घंटो मनाते रहते थे
कभी नए खिलोने आते थे कभी ढेरों मिठाईयां मिलती थी
-तरुण
बदलते क्यों है
गुजरते वक्त के साथ , ये रिश्ते बदलते क्यों है
साथ चलना चाहे जिनके, वो बिछड़ते क्यों है
कतरा कतरा मिलकर जो बनते है बादल
बूंद बूंद बनके वो हवाओ में बिखरते क्यों है
वो खेलता है हमसे, कठपुतली से हम है
उसके खेल में दिल के रिश्ते पनपते क्यों है
है एक से सब इन्साँ , है एक सी ही फितरत
ये सरहदों के फासले, फिर इन्हे बांटते क्यों है
वो जिसकी यादें अक्सर रुलाती है हमे
उससे मिलने को हम दिन रात तरसते क्यों है
-तरुण
साथ चलना चाहे जिनके, वो बिछड़ते क्यों है
कतरा कतरा मिलकर जो बनते है बादल
बूंद बूंद बनके वो हवाओ में बिखरते क्यों है
वो खेलता है हमसे, कठपुतली से हम है
उसके खेल में दिल के रिश्ते पनपते क्यों है
है एक से सब इन्साँ , है एक सी ही फितरत
ये सरहदों के फासले, फिर इन्हे बांटते क्यों है
वो जिसकी यादें अक्सर रुलाती है हमे
उससे मिलने को हम दिन रात तरसते क्यों है
-तरुण
मंगलवार, 4 मार्च 2008
याद आता है
वो हर सुबह तुझे ऑफिस में ढूंढना याद आता है
और दिन भर तुझे छुप छुप के देखना याद आता है
वो हर बात पे तुझे फ़ोन करना, तुझसे पूछना और
वो बिना बात के तेरे फ़ोन की घंटी बजाना याद आता है
वो ज़रा ज़रा सी देर में उठकर तेरे करीब से गुजरना
कभी पानी लेने का, कभी गिराने का वो बहाना याद आता है
वो चाये के लिए तुझे बुलाना तेरे करीब जाना और
वो खाने की मेज़ पे तेरे आने तक कुछ न खाना याद आता है
वो घंटो तक बालकनी में खड़े होकर तेरा इंतज़ार करना और
वो तेरे जाने के बाद ऑफिस से निकलना याद आता है
-तरुण
और दिन भर तुझे छुप छुप के देखना याद आता है
वो हर बात पे तुझे फ़ोन करना, तुझसे पूछना और
वो बिना बात के तेरे फ़ोन की घंटी बजाना याद आता है
वो ज़रा ज़रा सी देर में उठकर तेरे करीब से गुजरना
कभी पानी लेने का, कभी गिराने का वो बहाना याद आता है
वो चाये के लिए तुझे बुलाना तेरे करीब जाना और
वो खाने की मेज़ पे तेरे आने तक कुछ न खाना याद आता है
वो घंटो तक बालकनी में खड़े होकर तेरा इंतज़ार करना और
वो तेरे जाने के बाद ऑफिस से निकलना याद आता है
-तरुण
सोमवार, 3 मार्च 2008
बस कमी तुम्हारी है
रात है ख्वाब है नींद की खुमारी है
तुम भी चले आओ, बस कमी तुम्हारी है
नज्म लिए हाथ में, तुझे करूँ याद मैं
लफ्ज़ अधूरे है, कहानी जैसे हमारी है
तू भी कहीं दूर है, दिल भी मजबूर है
धड़कने खामोश है, साँसे कुछ भारी है
हाथ में जाम है लब पे तेरा नाम है
होश नही होश में , क्या हसीं बीमारी है
चाँद भी है यहाँ , रात भी है जवाँ
बहकते हुए हम है दिल में बेकरारी है
-तरुण
तुम भी चले आओ, बस कमी तुम्हारी है
नज्म लिए हाथ में, तुझे करूँ याद मैं
लफ्ज़ अधूरे है, कहानी जैसे हमारी है
तू भी कहीं दूर है, दिल भी मजबूर है
धड़कने खामोश है, साँसे कुछ भारी है
हाथ में जाम है लब पे तेरा नाम है
होश नही होश में , क्या हसीं बीमारी है
चाँद भी है यहाँ , रात भी है जवाँ
बहकते हुए हम है दिल में बेकरारी है
-तरुण
रविवार, 2 मार्च 2008
जाने क्यों ये जाता ही नही
एक साया मेरे साथ है जाने क्यों ये जाता ही नही
तन्हाई का जो वादा है जाने क्यों ये निभाता ही नही
आंखो से छलकते थे मोती, जब याद मुझे वो आते थे
अब उनकी यादों को , जाने क्यों मैं बुलाता ही नही
मेरी बेवफाई के किस्से हर रात वो सबसे कहता है
अपनी कसमें आज भी , जाने क्यों वो निभाता ही नही
कभी खुशी कभी है ग़म, ज़िंदगी की ये रीत है
खुशी आयी मगर, ये ग़म है कि बस जाता ही नही
अब मयकदें में भी हमको मिलती नही शराब
उसका नाम जो लिया, साकी भी अब पिलाता ही नही
-तरुण
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