चलो उतार फैंके ये पहचान हम अपनी
अपने चेहरे भी निकल के रख दे हम
एक ही रंग करले अपने बदन का
फिर देखे
कैसे इंसान इंसान को देखता है
कैसे आमिरी गरीबो के
ऊपर से गुजरती है
कैसे बांटती है सरहदे हमको
कैसे सियासत हमे तोडती है
चलो एक से हो जाये हम ...
-तरुण ...
Tarun Ji, Bahut dinon baad aaye.. Lekin acchhi cheej lekar hi aaye.. Bahut acchhi rachna.. Badhai..
जवाब देंहटाएंएक एक रचना शानदार
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