वो मुझको मिला दे तुझसे ऐसे
कि जब तुम साँस लो
तो मुझको जान मिले
तुम नींद लो
तो मुझको ख्वाब मिले
गुज़रे हवा जब तुमको छूकर
तो मुझको एक एहसास मिले
उतरे चाँद जब तुम्हारे आँगन में
मुझको हर वो रात मिले
हर पल लौटकर गुज़रे जो मेरे मांजी से
तेरी हर वो याद मिले
कुछ ऐसे मिला दे मुझको तुझसे
मुझको तेरी हर बात मिले
-तरुण
सोमवार, 15 दिसंबर 2008
शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008
अपने घर की दीवारों को आईना तेरा बनाया है
एक तेरे भरोसे पर अपनी सांसो को टिकाया है
तेरी उम्मीदों की तपिश में हर पल को जलाया है
तेरी यादो में आजकल मैं खोया हूँ कुछ ऐसे
अपने घर की दीवारों को आईना तेरा बनाया है
मैं तुझसे अपना हाल-ऐ-दिल कैसे कह दूँ
तुमने मेरी बातो पे कब कोई आंसू बहाया है
तुमने तोडा है हर रिश्ता मैं फिर न कुछ बोला
कुछ ऐसे मैंने तुझसे अपना हर वादा निभाया है
क्या लेकर मैं आया था जो रोऊँ मैं तबाह होकर
जो लिया था यहीं से वो यहीं पे तो लुटाया है
-तरुण
तेरी उम्मीदों की तपिश में हर पल को जलाया है
तेरी यादो में आजकल मैं खोया हूँ कुछ ऐसे
अपने घर की दीवारों को आईना तेरा बनाया है
मैं तुझसे अपना हाल-ऐ-दिल कैसे कह दूँ
तुमने मेरी बातो पे कब कोई आंसू बहाया है
तुमने तोडा है हर रिश्ता मैं फिर न कुछ बोला
कुछ ऐसे मैंने तुझसे अपना हर वादा निभाया है
क्या लेकर मैं आया था जो रोऊँ मैं तबाह होकर
जो लिया था यहीं से वो यहीं पे तो लुटाया है
-तरुण
सोमवार, 1 दिसंबर 2008
तेरा नाम लेकर
गिरती हुई शाम को कितनी बार संभाला है
रात में डूब डूब कर
न जाने कितनी बार सुबह को निकाला है
अंधेरे से डरते हुए चाँद को
कितनी बार
फलक पे टिकाकर सुलगाया है
थके हुए सूरज को
बादलो की चादर उडाकर
न जाने कितनी बार सुलाया है
जब जब भी कांपी है ये कायनात
जब जब भी घबराए है दिन रात
मैंने तेरा नाम लेकर इनके वजूद को बचाया है
-तरुण
रात में डूब डूब कर
न जाने कितनी बार सुबह को निकाला है
अंधेरे से डरते हुए चाँद को
कितनी बार
फलक पे टिकाकर सुलगाया है
थके हुए सूरज को
बादलो की चादर उडाकर
न जाने कितनी बार सुलाया है
जब जब भी कांपी है ये कायनात
जब जब भी घबराए है दिन रात
मैंने तेरा नाम लेकर इनके वजूद को बचाया है
-तरुण
सदस्यता लें
संदेश (Atom)