गुरुवार, 20 नवंबर 2008

इस रात को सुलाएं हम

ये रात अकेली है तनहा
इस रात को सुलाएं हम
वो ख्वाब जो कब से आँखों में सोये है
उनको एक एक करके जगाये हम
इस रात को सुलाएं हम

वो सुबह जो न जाने कबसे
दरवाज़े पे है थक गयी है
उसे घर में बुलाये, बिठाये हम

वो चाँद हमारा तनहा बेचारा
सुबह को वो भी तरस गया है
उस चाँद को ज़मीन पे लायें हम
फूलों की सैर कराएँ हम

इंसानों में फैली नफ़रत को
एक कच्चे ख्वाब सा भुला दे हम
कुछ प्यार के रिश्तो को
आज की रात सजाये हम
एक नयी दुनिया बसायें हम

उन भूखे तरसते बच्चो को
कुछ नए ख्वाबो का गुलदस्ता दे
उनकी हर उम्मीद को
एक नयी सुबह दिखाए हम
आज की रात
कुछ अलग कर दिखाए हम
चलो न इस रात को सुलाए हम


-तरुण

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