रविवार, 16 नवंबर 2008

दिन की हर शोख़ को ढलना होगा

दिन की हर शोख़ को ढलना होगा
फिर रात के साये में जलना होगा

फूलों की सेज पे जीने वालो
एक दिन कांटो पे भी चलना होगा

मैं तेरे करीब तो जाऊं लेकिन
फिर तेरी जुदाई में मुझे जलना होगा

तुम मेरी कसम खा के इतना बता दो
तुझे पाने के लिए क्या ख़ुद को बदलना होगा

आज कोई मुझे आवाज़ दे तो क्या
मेरी मजार से एक दिन सबको गुज़रना होगा

-तरुण


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें