सोमवार, 23 जून 2008

क्या मालूम था

मुस्कुराये थे कि शायद वक्त बदल जाएगा
क्या मालूम था गम ऐसे भी मिल जाएगा

रात भर जागकर कुछ तेरे ख्वाब सजाये थे
क्या मालूम था सुबह हर ख्वाब जल जाएगा

मुस्कानों को छुपाकर रखा था इस दिल में
सोचा न था दिल भी इन्सां सा बदल जाएगा

तू ही आकर सुना दे क्यूँ तू बेवफा हो गयी
मेरी मौत का वक्त शायद कुछ देर टल जाएगा

रोने के बहाने लाखो है कोई हंसने का न मिला
एक आवाज़ देदे दिल से ये बोझ निकल जाएगा

-तरुण

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