तेरी आंखो का ही खेल है सब
वो चुप रहकर भी सब कहती है
मैं घंटो देखता हूँ उनको
वो ऐसे मेरी नजरो में रहती है
तेरी दिल की बातें वो करती है
लेकिन मेरे दिल की भी वो सुनती है
तुम रूठो तो वो खफा हो जाती है
मैं रूठो तो वो भी तरसती है
कभी कभी मेरी आँखे पे भी
वो दुआओं सा प्यार वो बरसाती है
जब मैं तेरी तरफ़ हाथ बढाता हूँ
वो निगाहों से मूझे बाँध लेती है
तेरी आंखो में वो कशिश सी है
जो मेरी ज़िंदगी को खींचे जाती है
मैं कितना भी दूर रहूँ तुझसे
वो मूझे तेरे करीब ले आती है
मैं तेरी आंखो में जब देखता हूँ
सागर सा गहरा एक प्यार मूझे दिखता है
कभी मैं डूब जाता हूँ उसमे
कभी वो मूझे उठकर चूम लेता है
मैं मायूस होता हूँ जब भी कभी
एक उम्मीदों का आसमान मूझे वो दिखाती है
मेरी नाकामियों में भी वो
मूझे एक जीत का एहसास वो दिलाती है
-तरुण
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