कल रात
फिर वही ख्वाब
मेरी आँखों में आया
कल रात
आसमान का चाँद
मेरे घर की छत पे उतर आया
कल रात
फिर वही बात
चुपके से कही तुमने
कल रात
फिर वही एहसास
महसूस किया मैंने
कल रात
फिर तुम्हारा साथ
कुछ लम्हों को जिया मैंने
कल रात
तुम्हारा हाथ
अपने हाथो में लिया मैंने
कल रात
अपनी हर साँस
फिर तेरे नाम की मैंने
कल रात
छोटी सी मुलाक़ात
फिर एक जिंदगी दे गयी मुझको
आज सुबह
लेकिन वो रात
फिर चुपचाप लौट गयी
मैं फिर से तनहा रह गया
मैं फिर से तनहा रह गया
-तरुण
आपकी ये कविता दर्शाती है एक विरह वेदना में जल रहे इंसान को सुकून देते स्वप्न ... उम्दा लिखते है आप... काश हमारे आपके और सबके स्वप्न किसी हद तक सच हो पाते..
जवाब देंहटाएंनीलिमा