उसके जैसा हो जाता हूँ
उसके ख्यालो को सोचता हूँ
उसकी आहटो पे चलता हूँ
उसकी आवाजो मैं बोलता हूँ
कोई फिर भी क्यूँ
मेरी तरह नहीं सोचता है ...
मैं उसके गीतों को सुनता हूँ
उसकी साँसों को जीता हूँ
उसके नगमे गाता हूँ
उसके सपनो को लेता हूँ
कोई फिर भी क्यूँ
मेरी तरह नहीं सोचता है...
-तरुण