ये रात बिना नींद के गुजर जाये किसी तरह
सुबह के साथ तू भी मेरे घर आये किसी तरह
तडपते चाँद को रात ने बहलाया है बार बार
मूझे बस तेरा एक ख्वाब मिल जाये किसी तरह
मेरी हर आवाज़ तेरे दर से खाली लौट आती है
कभी एक पुकार पे तू भी आ जाये किसी तरह
मैं लोगो कि भीड़ में अक्सर खोया रहता हूँ
कभी किसी भीड़ मैं तू भी खो जाये किसी तरह
छोटी छोटी उम्मीदों से मैंने कितने आस्मां सजाये है
एक तेरा चाँद बस मेरी गली उतर जाये किसी तरह ..
-तरुण