तेरे रिश्ते को कब का दफ़न कर आया हूँ
फिर भी तेरा एहसास है कि जाता नहीं
रिश्तो कि भी शायद कोई रूह होती होगी
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तेरी हर एक याद को दरियां में बहा आया हूँ
तेरी हर आहट को ख़ामोशी में सुला आया हूँ
आजकल बहुत अकेला अकेला सा लगता है
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एक बार रोते हुए माँ से चाँद को माँगा था
अब हर रात खुदा से एक तुझे मांगता हूँ
काश एक बार चाँद मेरे आँगन में उतर आये
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एक खंजर सा उतरता है सीने में
जब जब याद तुम्हारी आती है
एक खंजर सा उतरता है सीने में
जब जब याद तुम्हारी आती है
कुछ रिश्ते खून से लिखे होते है
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कागज़ की किश्ती लिए एक दिन मैं
तेरा नाम लेकर समंदर में उतर गया था
वो समंदर अब तक मेरी आँखों से टपकता है
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तरुण