शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

त्रिवेणी

तेरे रिश्ते को कब का दफ़न कर आया हूँ
फिर भी तेरा एहसास है कि जाता नहीं

रिश्तो कि भी शायद कोई रूह होती होगी

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तेरी हर एक याद को दरियां में बहा आया हूँ
तेरी हर आहट को ख़ामोशी में सुला आया हूँ

आजकल बहुत अकेला अकेला सा लगता है

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एक बार रोते हुए माँ से चाँद को माँगा था
अब हर रात खुदा से एक तुझे मांगता हूँ

काश एक बार चाँद मेरे आँगन में उतर आये

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एक खंजर सा उतरता है सीने में
जब जब याद तुम्हारी आती है

कुछ रिश्ते खून से लिखे होते है

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कागज़ की किश्ती लिए एक दिन मैं
तेरा नाम लेकर समंदर में उतर गया था

वो समंदर अब तक मेरी आँखों से टपकता है

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तरुण

सोमवार, 2 नवंबर 2009

सड़के

हर रोज़ सुबह शाम
जिन सडको पे मैं
चलता हूँ दौड़ता हूँ
और अक्सर अपनी कार में
एक्सिलेरटर पे पैर लगाये
मैं सब तरफ भागता हूँ
उन सडको से कभी कभी
पल दो पल में रुक कर
पूछ लेता हूँ
क्या वो गुजरी है इस तरफ से
जानता तो हूँ
और यह अच्छी तरह से मालूम भी है
कि तुम  न आओगी इस तरफ कभी
फिर भी शायद किसी रोज़
क्या पता
अनजाने में यूँही कुछ सोचते हुए
तुम गुज़र जाओ इन सडको से कभी
जिन सडको पे मैं दिन रात घूमता हूँ
भूली हुई सी तुम्हारी कुछ यादें लेकर ...

-तरुण